पं. वामनराव लाखे
छत्तीसगढ़ अंचल में सहकारिता के जनक माने जाने वाले पं. वामनराव लाखे का जन्म 17 सितम्बर सन् 1872 ई. को रायपुर में हुआ था। उनके पिताजी का नाम पं. बलीराम गोविन्दराव लाखे था। वे पहले अत्यंत गरीब थे किंतु कठोर परिश्रम से उन्होंने धन अर्जित किया और कई गाँव खरीदे। वामनराव लाखे के जन्म के समय तक उनके परिवार की गणना समृद्ध घरानों में होने लगी थी।
वामनराव लाखे ने मैट्रिक तक की पढ़ाई रायपुर में की। पं. माधवराव सप्रे उनके सहपाठी तथा अभिन्न मित्र थे। सन् 1898 में उन्होंने नागपुर के फिलिप कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा पास की। सन् 1900 ई. में पं. माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ़ मित्र नामक मासिक पत्र का प्रकाशन किया। पं. वामनराव लाखे इसके प्रकाशक तथा स्वामी थे। यह छत्तीसगढ़ अंचल का पहला पत्र था। इसके माध्यम से क्षेत्र में साहित्य एवं राष्ट्रीय जागरण का युग आरंभ हुआ।
पं. वामनराव लाखे सन् 1904 ई. में कानून की पढ़ाई पूरी कर रायपुर में वकालत करने लगे। उन्होंने वकालत को जनसेवा का एक सशक्त माध्यम बनाया। वे कई वर्षों तक रायपुर के अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रहे। उनकी पत्नी श्रीमती जानकी बाई ने भी घरेलू कामकाज के साथ-साथ लाखेजी की समाज सेवा के कार्य में हमेशा साथ दिया। यही कारण है कि वे कई बार बूढ़ापारा वार्ड से रायपुर नगर पालिका के सदस्य चुने गए। बाद में पं. वामनराव लाखे दो बार नगरपालिका के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए।
अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में पं. वामनराव लाखे घर से नगर पालिका कार्यालय तक पैदल ही आना-जाना करते। रास्ते में लोग उनसे अपनी निजी व सामाजिक समस्याओं को लेकर मिलते और लाखे जी उनकी बातें सुनते और समस्याओं के निराकरण हेतु उचित पहल भी करते।
क्षेत्र के गरीब किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त कर सहकारी सिद्धांतों के आधार पर उन्हें आर्थिक मदद करने के उद्देश्य से पं. वामनराव लाखे ने सन् 1913 ई. में रायपुर में को-आपरेटिव सेण्ट्रल बैंक की स्थापना की। वे स्थापना से सन् 1936 ई. तक इसके अवैतनिक सचिव तथा सन् 1937 ई. से 1940 ई. तक अध्यक्ष रहे। उन्हीं के प्रयासों से ही बैंक का अपना भवन बन सका।
सन् 1915 ई. में रायपुर में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक तथा श्रीमती एनीबीसेण्ट की प्रेरणा से होमरुल लीग की स्थापना की गई। पं. वामनराव लाखे इसके संस्थापकों में से थे।
सन् 1915 ई. में ही पं. सुन्दरलाल शर्मा के प्रयासों से विशाल किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसकी अध्यक्षता पं. वामनराव लाखे ने ही की थी। निर्धन किसानों के कल्याण हेतु किए गए लाखे जी के कार्यों से प्रसन्न होकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘राय साहब’ की उपाधि दी थी। इसे उन्होंने सन् 1920 ई. में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में भाग लेते हुए लौटा दिया था।
सन् 1918 ई. में उनके क्षेत्र में एन्फ्लूएंजा की महामारी फैल गई। इस समय पं. वामनराव लाखे ने बीमार लोगों की तन-मन-धन से सेवा की। इनकी निःस्वार्थ सेवाभाव के कारण लोगों ने उन्हें ‘लोकप्रिय’ की उपाधि से विभूषित किया था।
सन् 1920 ई. के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक नागपुर अधिवेशन में महात्मा गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा। इस अधिवेशन में पं. वामनराव लाखे भी सम्मिलित हुए थे। अधिवेशन से लौटकर वे रायपुर में असहयोग आंदोलन के संचालन में सक्रिय हो गए। उन्होंने स्वदेशी तथा खादी का प्रचार किया। सन् 1921 ई. पं. माधवराव सप्रे ने राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की। लाखे जी इसके मंत्री बने। रावणभाँठा में एक विशाल खादी प्रदर्षनी आयोजित की गई। पं. वामनराव लाखे उस प्रदर्शनी के संयोजक थे।
सन् 1922 ई. में रायपुर जिला राजनीतिक परिषद के आयोजन में पं. वामनराव लाखे प्रमुख आयोजकों में से थे। इसी साल वे रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए।
सन् 1930 ई. में गाँधीजी द्वारा शुरु किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन का रायपुर में नेतृत्व पं. वामनराव लाखे, प्यारेलाल सिंह, मौलाना अब्दुल रऊफ, महंत लक्ष्मीनारायण दास तथा षिवदास डागा ने किया। इन्हें ‘पाँच पाण्डव’ कहा जाता था। इनमें से लाखे जी को ‘युधिष्ठिर’ कहा जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय उनकी गणना उच्च कोटि के नेताओं में होती थी।
पं. वामनराव लाखे को आरंग (रायपुर के समीप स्थित) में एक जनसभा में अंग्रेजी शासन के खिलाफ भाषण देने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें एक साल की सजा तथा तीन हजार रुपए का जुर्माना सुनाया गया। सन् 1941 ई. के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें फिर से सिमगा से गिरफ्तार कर लिया गया तथा चार माह के कारावास की सजा दी गई।
पं. वामनराव लाखे ने सन् 1945 ई. में बलौदाबाजार में किसान को-आपरेटिव राइस मिल की स्थापना की। उन्होंने रायपुर में शिक्षा के विकास में भी उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने यहाँ एम. व्ही. एम. स्कूल की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यही कारण है कि उनकी मृत्यु के बाद इस स्कूल का नाम बदलकर श्री वामनराव लाखे उच्चतर माध्यमिक शाला, रायपुर कर दिया गया। नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने नगर की अन्य कई शिक्षण संस्थाओं को भी सहयोग दिया।
15 अगस्त सन् 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हुआ। इस दिन रायपुर के मुख्य कार्यक्रम में पं. वामनराव लाखे ने ही झण्डारोहण किया था। सन् 1948 ई. में वे प्रांतीय सहकारी बैंक की बैठक में शामिल होने के लिए नागपुर गए और अस्वस्थ हो गए। यहीं उपचार के दौरान ही 21 अगस्त सन् 1948 ई. को उनका देहान्त हो गया।
पं. वामनराव लाखे छत्तीसगढ़ के उन महान सपूतों में से एक हैं, जिनकी सेवाओं का यह अंचल सदैव ऋणी रहेगा।
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