शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
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गजानन माधव मुक्तिबोध



महान कवि, कहानीकार और विचारक गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर सन् 1917 ई. को मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के ष्योपुर में हुआ था। उनके पिता श्री माधवराव मुक्तिबोध पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर थे। परंपरानुसार अपने पिताजी का नाम जोड़कर विद्यालय में उनका नाम गजानन माधव मुक्तिबोध लिखाया गया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा श्योपुर में हुई। पार्वती अपने दोनों बेटों को रात को अच्छी-अच्छी कहानियाँ सुनाती थीं। गजानन के पिताजी की बार-बार बदली होती थी। इससे बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी। आन्ता बाई गजानन की बुआ थीं जो इंदौर के एम.टी. अस्पताल में हेड नर्स थीं। गजानन का विद्यार्थी जीवन उनके संरक्षण में व्यतीत हुआ। उम्र के बढ़ने के साथ ही गजानन माधव मुक्तिबोध अंर्तमुखी होते चले गए। वे छोटी-छोटी कविताएँ लिखने लगे। उनकी कविताएँ जीवन के रहस्य को सुलझाना चाहती थीं। सन् 1935 ई. में माधव कॉलेज उज्जैन की पत्रिका में उनकी पहली कविता ‘हृदय की प्यास’ छपी। उन्होंने सन् 1938 ई. में होल्कर कॉलेज इंदौर से बी.ए. पास की थी। आजीविका के लिए मुक्तिबोध जी ने सन् 1937 ई. में बड़नगर में अध्यापन करने लगे। बाद में वे मार्डन स्कूल उज्जैन, शारदा शिक्षा सदन शुजालपुर तथा हितकारिणी हाईस्कूल जबलपुर में भी अध्यापन किए। उन्होंने 1937 में पारिवारिक एवं सामाजिक मर्यादाओं की परवाह न करते हुए ‘शान्ता’ से स्वेच्छा से विवाह किया। कालांतर में उनके यहाँ चार पुत्र रमेश, दिवाकर, दिलीप, गिरीश और पुत्री उषा का जन्म हुआ। जबलपुर (मध्य प्रदेश) में ही मुक्तिबोध की क्रांतिकारी लेखक हरिशंकर परसाई और समालोचक प्रमोद वर्मा से भेंट हुई और उनसे आत्मीयता बढ़ी। मुक्तिबोध का ज्यादातर समय साहित्य सृजन में बीतता था। वे स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपने लगे। सन् 1940 ई. में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय के संपादन में प्रथम ‘तार सप्तक‘ का प्रकाशन हुआ। गजानन माधव मुक्तिबोध तार सप्तक के पहले प्रथम कवि थे। इसमें उनकी लिखी हुई सत्रह कविताओं का प्रकाशन किया गया था। इससे मुक्तिबोध जी रातों-रात पूरे देश में विख्यात हो गए। उन पर माक्र्सवाद, समाजवाद, अस्तित्ववाद, राम मनोहर लोहिया, कीकेगार्ड, अरविंद घोष आदि विचारकों का गहरा प्रभाव रहा। तार सप्तक में कविताएँ भेजते समय मुक्तिबोध जी ने लिखा था- ‘‘मानसिक द्वन्द्व मेरे व्यक्तित्व में बद्धमूल हैं।’’ यही कारण है कि डॉ. नामवर सिंह ने उनकी कविता को आत्मसंघर्ष की कविता कहा है। तार सप्तक में संकलित मुक्तिबोध की कविताओं में अधिकांश विषय की दृष्टि से प्रगतिवादी किंतु शिल्प की दृष्टि से छायावादी हैं। अपने स्वाभिमानी और विद्रोही स्वभाव के कारण गजानन माधव मुक्तिबोध जी अधिक दिनों तक कहीं भी नहीं जम पाते। कालांतर में वे नागपुर आ गए। आकाशवाणी नागपुर के समाचार विभाग में संपादक बन गए। वे यहाँ लगभग छह वर्ष कार्य किए। उन्होंने सन् 1956 ई. में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘नया खून’ का संपादन किया। नागपुर एम्प्रेस मिल गोली काण्ड के समय नया खून के रिर्पोटर की हैसियत से वे मौजूद रहे। इसका मार्मिक चित्रण ‘अंधेरे में’ कविता में है। मुक्तिबोध एक समर्थ पत्रकार थे। वे अपने देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक दशा और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर लगातार लिखते रहे। उनकी सामाजिक चेतना के कारण ही समाज का कोई भी अंग उनकी पैनी नजरों से बच नहीं सका है। इसलिए डॉ. रमेश कुन्तल मेघ ने उन्हें ‘लोक जीवन का जासूस’ कहा है। सन् 1958 में मुक्तिबोध ने पाठ्यपुस्तकें लिखकर जीविकोपार्जन किया। सारथी, कर्मवीर में उन्होंने स्तंभ लेखन किया। सन् 1953 से 1957 की अवधि में उन्होंने कविता, कहानी, डायरी, राजनीतिक लेखन पूरी सृजनात्मक ऊर्जा, दबाव और आत्म विश्वास के साथ किया। कथा और आलोचनात्मक लेखन में भी उनकी रुचि थी। मुक्तिबोध जी सन् 1958 में छत्तीसगढ़ अंचल के शहर राजनांदगाँव आ गए। यहाँ उनकी भेंट दिग्विजय महाविद्यालय के प्राचार्य एवं समाजसेवी श्री किशोरीलाल शुक्ल से हुई। शुक्ल जी ने उन्हें महाविद्यालय में हिन्दी का प्राध्यापक नियुक्त किया। राजनांदगाँव में मुक्तिबोध जी अक्सर षाम को अपने मित्रों के साथ बैठकर साहित्यिक चर्चा करते। वे समय निकालकर राजनांदगाँव में झोपड पट्टी में रहने वाले गरीब मजदूरों के बीच जाते। उनकी समस्याएँ सुनते और यथासंभव मदद करते। अब तक उनकी दो पुस्तकें ‘नयी कविता का आत्म संघर्ष और अन्य निबंध’ तथा ‘कामायनी: एक पुनर्विचार’ छप चुकी थी। एक बार गजानन माधव मुक्तिबोध जी के बड़े बेटे दिवाकर बीमार पड़ गए। तब वे रात-रात भर जागकर उसकी देखभाल करते रहे। लगातार काम करते रहने से उनका भी स्वास्थ्य खराब रहने लगा। शरीर का बांया हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। उनके साहित्यिक मित्र उन्हें दिल्ली ले गए और हरिवंश राय बच्चन से भेंट किए। बच्चन सहित कई प्रख्यात साहित्यकार तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से भेंट किए। शास्त्री जी के निर्देशानुसार बेहतर उपचार के लिए मुक्तिबोध जी को दिल्ली के आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेस में भर्ती किया गया। यहीं उपचार के दौरान ही 11 सितम्बर सन् 1964 ई. को उनका निधन हो गया। मुक्तिबोध जी की मृत्यु के बाद उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित र्हुइं। इनमें प्रमुख हैं- भारत का इतिहास और संस्कृति (आलोचना), सतह से उठता आदमी (आलोचना), काठ का सपना (कहानी-संग्रह) चाँद का मुँह टेढ़ा है (कविता-संग्रह), भूरी-भूरी खाक धूल (कविता-संग्रह), नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध (आलोचना), नए साहित्य का सौन्दर्य-शास्त्र (आलोचना), समीक्षा की समस्याएँ (आलोचना), विपात्र (उपन्यास), सतह से उठता आदमी (उपन्यास)। मणिकौल ने मुक्तिबोध के उपन्यास सतह से उठता आदमी पर आधारित एक फिल्म बनाया है। मुक्तिबोध के काव्य-संग्रह ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ को सन् 1964 ई. उनकी मृत्यु के उपरांत साहित्य अकादमी सम्मान मिला। गजानन माधव मुक्तिबोध के जीवन का महत्वपूर्ण भाग छत्तीसगढ़ में ही बीता। मुक्तिबोध जी ने अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ यहीं लिखीं। इसलिए वे छत्तीसगढ़ को अपनी कर्मभूमि मानते थे और हम छत्तीसगढ़ वासियों को भी इस बात पर गर्व है। छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा उनकी स्मृति में राज्य स्तरीय गजानन माधव मुक्तिबोध स्मृति शिक्षक सम्मान स्थापित किया गया है। -00-