शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
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मिनीमाता



मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद तथा कर्मठ समाज सुधारक थीं। उनका जन्म सन् 1913 ई. में होलिका दहन के दिन असम राज्य के नुवागांव जिले के जमुनासुख नामक गाँव में हुआ था। उनका असली नाम मीनाक्षी था। उनके पिताजी का नाम महंत बुधारीदास तथा माँ का नाम देवमती बाई था। इनके नानाजी छत्तीसगढ़ के पंडरिया जमींदारी के सगोना गाँव के निवासी थे। सन् 1901 से 1910 के मध्य जब छत्तीसगढ़ अंचल में भीषण अकाल पड़ा तो मीनाक्षी के नानाजी आजीविका की तलाश में सपरिवार असम चले गए और चाय के बागानों में काम करने लगे। मीनाक्षी ने असम में सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। मीनाक्षी एक देशभक्त बालिका थी जो अल्पायु में ही गुलामी का मतलब और आजादी का महत्व जान चुकी थीं। वे अपने साथी बच्चों के साथ विदेशी वस्त्रों की होली जलाती तथा स्वदेशी का प्रचार-प्रसार करती थीं। मीनाक्षी के जीवन में एक नया मोड़ उस समय आया जब सतनामी समाज के गुरु अगमदास जी का धर्म प्रचार के सिलसिले में असम आगमन हुआ। गुरु अगमदास का कोई पुत्र न था। इससे गुरु गद्दी के उत्तराधिकारी की चिंता पूरे समाज में व्याप्त थी। इस कारण उन्होंने मीनाक्षी को अपनी जीवनसंगिनी के रूप में चुना और सन् 1932 ई. में उनसे विधिवत विवाह किया। अब गुरुपत्नी मीनाक्षी मिनीमाता के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हुईं। विवाह के उपरांत मिनीमाता रायपुर, छत्तीसगढ़ आ गईं तथा यहीं पर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। उनका हिंदी, असमिया, अंग्रेजी, बांग्ला तथा छत्तीससगढ़़ी भाषा पर अच्छा अधिकार था। मिनीमाता ने गुरु परंपरा के अनुसार संपूर्ण छत्तीसगढ़़ में अपने पति गुरु अगमदास के साथ भ्रमण कर सामाजिक कार्यों का अनुभव प्राप्त किया। गुरु अगमदास महान देशभक्त तथा समाज सुधारक थे। वे राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। वे स्वदेशी के समर्थक थे और खादी पहनते थे। मिनीमाता भी खादी पहनती थीं। गुरु अगमदास का की प्रेरणा और प्रोत्साहन से ही सतनामी समाज के सैकड़ों युवक राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे। रायपुर स्थित उनका घर सत्याग्रहियों के लिए मंदिर के समान बन गया था। पं. सुंदरलाल शर्मा, डॉ. राधाबाई, ठा. प्यारेलाल सिंह, पं. रविशंकर शुक्ल, डॉ. खूबचंद बघेल जैसे महान नेता उनके घर अकसर आते रहते थे। देश की स्वतंत्रता के बाद गुरु अगमदास सांसद चुने गए। सन् 1951 ई. में उनका अचानक स्वर्गवास हो गया। पं. रविशंकर शुक्ल की प्रेरणा से मिनीमाता मध्यावधि चुनाव में रायपुर से सांसद चुनी गईं। तब उनका बेटा विजय कुमार बहुत छोटा था। अब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई। परंतु उन्होंने बहुत ही कुशलता-पूर्वक अपने घरेलू और रामाजिक दायित्व का निर्वाहन किया। यही कारण है कि वे सन् 1952 ई. में रायपुर, सन् 1957 ई. में बलौदाबाजार एवं सन् 1967 ई. में जांजगीर-चाम्पा क्षेत्र से लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। मिनीमाता जी अस्पृष्यता को समाज के लिए एक अभिषाप मानती थीं और देश के सर्वांगीण विकास के लिए इसे पूरी तरह से समाप्त कराना चाहती थीं। यही कारण है कि उन्होंने संसद में ऐतिहासिक ‘अस्पृष्यता निवारण विधेयक’ प्रस्तुत किया जो कि पारित भी हुआ। मिनीमाता ने देश की संसद में महिलाओं की दषा सुधारने के लिए निरंतर आवाज बुलंद की। उन्होंने महिला उत्पीड़न, दहेज प्रथा, अन्याय, बेमेल विवाह तथा बालविवाह आदि का कड़ा विरोध किया। उन्होंने अपने निर्देषन में कई जगह विधवा पुनर्विवाह संपन्न कराए। बाल विवाह तथा बेमेल विवाह के विरूद्ध कड़ा निर्देष प्रसारित करवाया। उन्होंने रायपुर में सतनामी आश्रम की स्थापना की। मिनीमाता ने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी काम किया। वे अपनी सभाओं में ही नहीं सभी मिलने वाले लोगों से भी कहतीं कि अपनी बेटियों को जरूर शिक्षित करें। उन्होंने कई जरूरतमंद गरीब बच्चों को अपने घर में रखकर भी पढ़ाया, लिखाया और आत्मनिर्भर बनाया। रायपुर स्थित अमीनपारा हरिजन छात्रावास की वे संस्थापक संचालक सदस्या थीं। मिनीमाता ने भिलाई इस्पात संयंत्र में क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा मंं कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़़ मजदूर संघ का गठन किया था। उन्होंने बचपन से ही गरीबी को बहुत करीब से देखा और भोगा था। यही कारण है कि वे श्रमवीर मजदूरों की हिमायती थीं। मिनीमाता अछूतोद्धार तथा स्वच्छता अभियान में सदैव आगे रहती थीं। मिनीमाता ने अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ तथा सतनामी महासमिति की भी स्थापना की थी। वे भारतीय दलित वर्ग संघ के महिला षाखा की उपाध्यक्ष भी थीं। मिनीमाता की निःस्वार्थ समाज सेवा की भावना को देखते हुए पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवन राम, श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पं. रविशंकर शुक्ल जैसे देश के शीर्ष नेता भी उनसे प्रभावित थे तथा सदैव उन्हें प्रोत्साहित करते थे। छत्तीसगढ़़़ अंचल में कृषि तथा सिंचाई के लिए हसदेव बाँध परियोजना के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिक निभाई थी। ऐसा कहा जाता है कि जब मिनीमाता जी सांसद के रूप में दिल्ली में रहती थीं, तो उनका निवास स्थान एक आश्रम या धर्मशाला जैसा होता था। छत्तीसगढ़ अंचल से कोई भी व्यक्ति देश की राजधानी दिल्ली पहुँचता तो उसे कम से कम वहाँ ठहरने की चिंता नहीं होती थी। मिनीमाता के निवास स्थान पर हर जाति, वर्ग के लोग आते थे। वे बिना किसी भेदभाव के सबकी समस्याओं को दूर करने तत्पर रहती थीं। 11 अगस्त सन् 1972 ई. को भोपाल से दिल्ली जाते हुए पालम हवाई अड्डे के पास विमान दुर्घटना में उनका देहांत हो गया। नवीन राज्य की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़़़ शासन ने उनकी स्मृति में महिला उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राज्य स्तरीय मिनीमाता सम्मान स्थापित किया है। -00-