शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
मुख्यपृष्ठ > विषय > सामान्य ज्ञान

पं. सुन्दरलाल शर्मा



जिस प्रकार भारत में राष्ट्रीय जागरण का अग्रदूत राजा राममोहन राय को माना जाता है ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ अंचल में राष्ट्रीय जागरण के प्रणेता पं. सुन्दरलाल शर्मा को माना जाता है। उन्होंने ही इस क्षेत्र में सामाजिक और राष्ट्रीय आंदोलन का सूत्रपात किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी पं. सुन्दरलाल शर्मा की ख्याति एक महान साहित्यकार, मूर्तिकार, चित्रकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक, संघर्षशील नेता एवं प्रखर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में है। पं. सुन्दरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसम्बर सन् 1881 ई. को राजिम के पास महानदी के तटवर्ती ग्राम चमसुर (चंद्रसूर) में हुआ था। उनके पिता पं. जियालाल तिवारी तत्कालीन कांकेर रियासत में विधि सलाहकार थे। उन दिनों छत्तीसगढ़ अंचल में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बहुत ही कम था। इस कारण सुंदरलाल शर्मा की विधिवत स्कूली शिक्षा केवल प्राथमिक स्तर तक ही हुई। पढ़ाई में रुचि होने से उन्होंने स्वाध्याय से ही संस्कृत, बांग्ला, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू, उड़िया आदि कई भाषाएँ भी सीख लीं। पं. सुन्दरलाल शर्मा ने किशोरावस्था में ही कविताएँ, लेख एवं नाटक आदि लिखना प्रारंभ कर दिया था। वे आशुकवि थे। नाट्य-लेखन तथा रंगमंच में उनकी गहरी रुचि थी। सन् 1898 ई. में उन्होंने पं. विश्वनाथ दुबे के सहयोग से राजिम में कवि समाज की स्थापना की। यह ऐसी पहली साहित्यिक संस्था थी जिसने छत्तीसगढ़ अंचल में साहित्यिक चेतना जागृत की। पं. सुन्दरलाल शर्मा सन् 1903 ई. में अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्य बने। उन्होंने सन् 1907 ई. में सूरत (गुजरात) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में जाने वाले छत्तीसगढ़ के युवाआंे का नेतृत्व किया। सूरत से लौटते ही पं. सुन्दरलाल शर्मा ने नारायणराव मेघावाले तथा कुछ अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार-प्रसार का आंदोलन शुरू किया। उनका मानना था कि जब तक देश के लोग स्वदेश में बनी वस्तुओं का उपयोग नहीं करेंगे, तब तक न तो गाँवों की गरीबी मिटेगी और न ही राष्ट्रीय भावनाओं का जागरण होगा। इस हेतु पं. सुन्दरलाल शर्मा ने अपनी जमीन जायदाद बेचकर राजिम, धमतरी और रायपुर में स्वदेशी वस्तुओं की कई दुकानें खोलीं तथा लगातार घाटा होने पर भी उन्हें वर्षों चलाया। अगस्त सन् 1920 ई. में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में कण्डेल ग्राम में नहर सत्याग्रह आरंभ हुआ। यह भारत का प्रथम सत्याग्रह आंदोलन था जिसे स्वयं किसानों ने संगठित होकर चलाया। इस समय पं. सुन्दरलाल शर्मा के प्रयासों से 20 दिसम्बर सन् 1920 ई. को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पहली बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। पं. सुन्दरलाल शर्मा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। सन् 1925 ई. में धमतरी में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हुआ। शर्मा जी ने दोनों पक्षों में समझौता कर इसे षांत किया। 26 जनवरी सन् 1930 ई. का दिन पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। धमतरी में इस दिन विराट आयोजन कराने का श्रेय शर्मा जी को है। सन् 1930 ई. में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व करने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा राजद्रोह का अभियोग लगाकर दो वर्षों का कठोर कारावास दिया गया। सन् 1931 ई. में गांधी-इरविन समझौते के कारण पं. सुन्दरलाल शर्मा को जेल से मुक्त कर दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें कई बार जेल यात्राएँ करनी पड़ीं तथा ब्रिटिश सरकार के जुल्म का शिकार होना पड़ा। वे सत्यवादी थे। उनका विचार था- ‘‘सत्य के लिए डरो मत, चाहे जियो या मरो।’’ गाँवों से अज्ञानता, अंधविश्वास तथा कुरीतियों को मिटाने के लिए पं. सुन्दरलाल शर्मा शिक्षा के प्रचार-प्रसार को आवश्यक समझते थे। इस हेतु उन्होंने राजिम में एक संस्कृत पाठशाला तथा एक वाचनालय स्थापित किया था। रायपुर के बाह्मण पारा में ‘बाल समाज पुस्तकालय’ की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। पं. सुन्दरलाल शर्मा ऐसे पहले विचारक थे जिनकी स्पष्ट मान्यता थी कि दलितों के भी समाज में सवर्णों की भाँति राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक अधिकार हैं। वे दलितों को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए सतत् संघर्षशील थे। अस्पृश्यता को वे भारत की गुलामी तथा हिन्दू समाज के पतन का प्रमुख कारण मानते थे। उन्होंने दलितों के उत्थान एवं संगठन के लिए गाँव-गाँव घूमकर उनकी हीन भावना दूर की। उनसे यज्ञ करवाया तथा उन्हें जनेऊ पहनाकर समाज में सवर्णों की बराबरी का दर्जा प्रदान किया। जनेऊ पहनाते समय उनसे प्रतिज्ञा करा ली जाती थी कि वे मादक द्रव्य तथा माँस का सेवन नहीं करेंगे। अछूतोद्धार के क्षेत्र में किए गए उनके उल्लेखनीय कार्य के कारण उन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी कहा जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का जब दूसरी बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ तो उन्होंने पं. सुन्दरलाल शर्मा के द्वारा किए गए कार्यों को देखकर कहा था- ‘‘सुन्दरलाल जी तो हरिजनोद्धार के इस कार्य में मेरे भी गुरु निकले। समाज सुधार का उनका यह प्रयास प्रशंसनीय एवं अभिनंदनीय है।’’ सुन्दरलाल शर्मा एक महान साहित्यकार थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी बोली को भाषा का रूप दिलाने के लिए अथक प्रयास किया। इस हेतु उन्होंने स्वयं हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी में कई ग्रंथों की रचना की। इनमें प्रमुख हैं- प्रह्लाद चरित्र, करुणा पचीसी, प्रलाप पदावली, श्री रघुराज गुण कीर्तन, ध्रुव चरित्र, छत्तीसगढ़ी दानलीला। उनकी लिखी छत्तीसगढ़ी दानलीला तो इतनी लोकप्रिय हुई कि आज भी लोग गाँव-गाँव में उसे बड़े शौक से गाते हैं। यह छत्तीसगढ़ी का प्रथम प्रबंध काव्य है। वे अपनी कविताओं में ‘सुन्दर कवि’ उपनाम का उपयोग करते थे। पं. सुन्दरलाल शर्मा एक अच्छे चित्रकार तथा मूर्तिकार थे। वे प्राकृतिक दृश्यों का सुंदर चित्रांकन करते थे। वे कृषि कार्य में भी अपने विचारों के अनुकूल वैज्ञानिक एवं नवीन पद्धति का उपयोग करते थे। जीवन के अंतिम वर्षों में वे पद की लालसा से दूर अपने गाँव में कृषि कार्य में संलग्न रहे। 28 दिसम्बर सन् 1940 को उनका निधन हो गया। हम उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी के रूप में हमेशा याद करते रहेंगे। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहित्य एवं आंचलिक साहित्य रचना के लिए एक राज्य स्तरीय पं. सुन्दरलाल शर्मा सम्मान स्थापित किया है। -00-