वीर हनुमान सिंह
10 दिसम्बर सन् 1857 को सोनाखान के देशभक्त जमींदार क्रांतिवीर नारायण सिंह को राजद्रोह के अपराध में रायपुर के चैराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया। इसे देखने के लिए रायपुर के सभी फौजियों को उपस्थित रहने आदेशित किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था ताकि लोग आतंकित हो जाएँ और अंग्रेजों के विरुद्ध सिर उठाने का साहस न कर सकें।
अंग्रेजों का यह भ्रम मात्र 39 दिनों बाद ही दूर हो गया जब 18 जनवरी सन् 1858 ई. को रायपुर में ठाकुर हनुमान सिंह के नेतृत्व में सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यद्यपि इस विद्रोह को मात्र छह-सात घंटे में ही दबा दिया गया लेकिन यह एक साहसिक प्रयास और ऐतिहासिक घटना थी।
रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी) में उस समय फौजी छावनी थी। इसे थर्ड रेगुलर रेजीमेण्ट कहा जाता था। इसी रेजीमेण्ट में हनुमान सिंह मैग्जीन लश्कर के पद पर नियुक्त थे। जिस समय क्रांतिवीर नारायण सिंह को रायपुर के जयस्तम्भ चौक के पास सरेआम फाँसी पर लटकाया जा रहा था, उसी समय हनुमान सिंह ने अंग्रेजों से इसका बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कुछ विश्वस्त साथियों से चर्चा की और योजनाबद्ध तरीके से 18 जनवरी सन् 1858 ई. की रात्रि साढ़े सात बजे सशस्त्र हमला बोल दिया।
देशी पैदल सेना की थर्ड रेजीमेण्ट के सार्जेण्ट मेजर सिडबेल उस समय अपने कक्ष में अकेले ही बैठे आराम कर रहे थे। वे बहुत ही तेज-तर्रार अफसर माने जाते थे। हनुमान सिंह बिना अनुमति लिए ही उस कक्ष में निर्भीकतापूर्वक घुस गए। उन्होंने पहले अंग्रेज सरकार को जमकर कोसा फिर तलवार से उन पर लगातार कई बार घातक प्रहार किए। कुछ ही देर में मेजर सिडबेल की मौत हो गई। इस सम्बन्ध में अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवेदन के अनुसार सार्जेण्ट मेजर सिडबेल पर ठा. हनुमान सिंह ने नौ घातक हमले किए थे।
मेजर सिडबेल को मौत की नींद सुलाने के बाद ठा. हनुमान सिंह अपने कुछ साथियों के साथ छावनी पहुँचे। उन्होंने ऊँची आवाज में चिल्ला-चिल्लाकर अपने अन्य साथी सिपाहियों को भी इस विद्रोह में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया। दुर्भाग्य से सभी सिपाहियों ने उनका साथ नहीं दिया। इसी बीच सिडबेल की हत्या का समाचार पूरी छावनी में फैल चुका था। अंग्रेज अधिकारी सतर्क हो गए। उन्होंने हनुमान सिंह और उनके साथियों को चारों तरफ से घेर लिया।
हनुमान सिंह और उनके साथी 6-7 घंटे तक अंग्रेजों का मुकाबला करते रहे। अंत में उनके कारतूस खत्म हो गए। मौका देखकर हनुमान सिंह तो भागने में सफल हो गए लेकिन उनके सत्रह साथी अंगे्रजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तार किए गए सिपाहियों पर तत्कालीन अंग्रेज सरकार के द्वारा राष्ट्रद्रोह और बगावत के अपराध में मुकद्मा चलाया गया और सबको मृत्युदण्ड दिया गया।
22 फरवरी, सन् 1858 ई. को फौज के सभी सिपाहियों की उपस्थिति में इन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। इन सत्रह शहीदों के नाम हैं- गाजी खान (हवलदार), अब्दुल हयात (गोलंदाज), मुल्लू (गोलंदाज), शिवरी नारायण (गोलंदाज), पन्नालाल (सिपाही), मातादीन (सिपाही), ठाकुर सिंह (सिपाही), अकबर हुसैन (सिपाही), बल्ली दुबे (सिपाही), लल्ला सिंह (सिपाही), बुद्धु (सिपाही), परमानंद (सिपाही), शोभाराम (सिपाही), दुर्गाप्रसाद (सिपाही), नाजर मोहम्मद (सिपाही), शिव गोविंद (सिपाही) और देवीदीन (सिपाही)।
हनुमान सिंह के नेतृत्व में किए गए विद्रोह के सत्रह शहीदों में सभी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोग थे जो इस बात का प्रतीक है कि स्वतंत्रता की चाह और राष्ट्रहित की उत्कृष्ट भावना इस क्षेत्र के लोगों में कूट-कूट कर भरी थी।
कैप्टन स्मिथ के बयान से लगता है कि ठा. हनुमान सिंह ने छावनी में विद्रोह के दो दिन बाद ही फिर से 20 जनवरी सन् 1858 ई. की देर रात छत्तीसगढ़ क्षेत्र के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर भी हमला करने की कोशिश की थी। उस समय बंगले में इस क्षेत्र के कई प्रमुख वरिष्ठ अधिकारी सो रहे थे। कैप्टन स्मिथ इन अधिकारियों की सुरक्षा हेतु नियुक्त थे। ठीक समय पर कैप्टन स्मिथ और उसके साथियों के जाग जाने से हनुमान सिंह को वहाँ से भागना पड़ा। अंग्रेज सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए पाँच सौ रुपए के नगद पुरस्कार की घोषणा भी की थी। इतनी बड़ी राशि के प्रलोभन के बावजूद हनुमान सिंह को कभी गिरफ्तार नहीं किया जा सका। उनके फरार होने की इस घटना के बाद उनका कोई विवरण प्राप्त नहीं होता।
ठा. हनुमान सिंह के जन्म और मृत्यु के सम्बन्ध में कोई भी प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती किंतु हनुमान सिंह सम्बन्ध में अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवेदन के अनुसार वे बैसवाड़ा के राजपूत थे और सन् 1858 ई. में उनकी आयु 35 वर्ष थी। अर्थात् उनका जन्म सन् 1833 ई. माना जा सकता है।
कैप्टन स्मिथ के अनुसार जिस प्रकार हनुमान सिंह ने डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर साहसपूर्ण आक्रमण किया, यदि उसे अपने उद्देश्य में सफलता मिल जाती तो निश्चय ही अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों का इस शहर से सफाया हो जाता।
हनुमान सिंह ने शहीद मंगल पांडेय की भाँति रायपुर स्थित छावनी के सिपाहियों से क्रांति का आह्वान किया था। सफलता उनके हाथ नहीं लगी अन्यथा रायपुर भी देश के स्वाधीनता संग्राम के दिनों में महत्वपूर्ण नगर बन गया होता। फिर भी हनुमान सिंह का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा और भावी पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा।
नवीन राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा उनकी स्मृति में खेल प्रशिक्षकों हेतु राज्य स्तरीय वीर हनुमान सिंह पुरस्कार की स्थापना की गई है।
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