बिसाहू दास महंत
बिसाहू दास महंत का जन्म 1 अप्रैल सन् 1924 को सारागाँव (वर्तमान जांजगीर-चांपा जिला) के एक प्रतिष्ठित कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंजराम महंत एक अनुशासन प्रिय एवं परिश्रमी कृषक थे। इसका प्रभाव उनके सुपुत्र बिसाहूदास पर भी पड़ा। बालक बिसाहू अपने स्कूली जीवन में अत्यंत मेधावी छात्र रहे। इस कारण उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली। वे विद्यार्थी जीवन में हॉकी, फूटबॉल, व्हालीबॉल तथा टेनिस के अच्छे खिलाड़ी होने के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई में भी बहुत तेज थे।
कालांतर में बिसाहू दास महंत का विवाह जानकी बाई से हुआ। विवाह के बाद भी उनकी पढ़ाई-लिखाई जारी रही। उन्होंने सन् 1942 ई. में हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की। उस समय तक भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। बिसाहू दास महंत महात्मा गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। इस कारण उन्हें स्कूल से मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद हो गई।
बिसाहू दास महंत का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की एक मिषाल है। वे विषम परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोए और निंरतर आगे बढ़ते रहे। आर्थिक समस्याएँ उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकीं। उन्होंने विद्यार्थियों को ट्यूषन पढ़ाते हुए स्वयं मारिश कॉलेज, नागपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
मारिश कॉलेज, नागपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बिसाहू दास महंत नगर पंचायत चांपा के विद्यालय में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए। जनसेवा की भावना और नेतृत्व शील व्यक्तित्व के कारण कालांतर मंा वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। वे छत्तीसगढ़ अंचल के बाराद्वार, नवागढ़ एवं चांपा क्षेत्र से चुनकर विधानसभा के सदस्य बने। उनका सम्पूर्ण जीवन अहंकारशून्य रहा। यही उनकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण था।
बिसाहू दास महंत सन् 1952 से 1977 ई. तक छह बार विधानसभा चुनाव में लगातार विजयी होते रहे। उस समय वे मध्यप्रदेश की राजनीति के प्रमुख तथा निर्विवाद छबि के राजनेताओं माने जाते थे। महंत जी अपने राजनीतिक जीवनकाल में लोक निर्माण मंत्री, जेल, श्रम, आदिम जाति कल्याण, वाणिज्य, उद्योग एवं नैसर्गिक संसाधन मंत्री के रूप में गुरुत्तर दायित्वों का निर्वहन किए।
बिसाहू दास महंत सच्चे अर्थों में एक जननेता थे। वे हरिजन, आदिवासी एवं पिछड़े वर्गों के हितचिंतक तथा छत्तीसगढ़ अंचल की अस्मिता के उन्नायक थे। वे छत्तीसगढ़ अंचल के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और सिंचाई को अति आवश्यक मानते थे। एक केबिनेट मंत्री और मध्यप्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष के गुरुतर दायित्व का निर्वाह करते हुए भी महंत जी ने स्वयं को कभी आम जनता से अलग होने नहीं दिया और अपने विश्वास के घरातल को सदैव बनाए रखा। उन्होंने आडम्बर और शोर शराबा से सदैव दूरी बनाए रखा।
बिसाहू दास महंत एक कृषक परिवार से थे। वे किसानों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए सिंचाई के साधन एवं स्रोत का विकास आवश्यक समझते थे। हसदो बाँगो बांध के स्वप्नद्रष्टा बिसाहूदास ही थे। इस बांध के बन जाने से आज जांजगीर-चांपा जिले की गणना भारत के सर्वाधिक सिंचित जिलों में हो रही है। वर्तमान में जांजगीर-चांपा जिले की 80 प्रतिषत कृषि भूमि सिंचित है। यह सब हसदो बाँगो बाँध की ही देन है जो बिसाहूदास महंत की प्रेरणा एवं परिकल्पना का ही परिणाम है। इस बाँध के कारण ही आज कोरबा एशिया महाद्वीप का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र बन सका है।
बिसाहू दास महंत की दूरदर्शिता और प्रयासों का ही परिणाम है कि आज उनका जांजगीर-चांपा क्षेत्र दुनियाभर में कोसा, काँसा और कंचन नगरी के नाम से विख्यात है।
बिसाहू दास महंत चिंतन-मनन करने वाले अध्ययनशील व्यक्ति थे। उनका सपना था कि प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय बने। स्कूलों का पुस्तकालय सुविधा संपन्न हो। उनकी जन्मभूमि सारागाँव में उन्हीं के प्रयास से गठित ‘नव ज्योति साहित्य समिति’ द्वारा एक पुस्तकालय की स्थापना की गई थी। बिसाहू दास महंत राजनीति को जाति एवं क्षेत्रीयता की भावना से सदैव दूर रखे। वे राजनीति को जनसेवा का एक माध्यम मानते थे। उनके विचारों में गांधी और कबीरियत भाव को सहज रूप में देखा जा सकता है।
बिसाहू दास महंत धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। कबीरपंथी होते हुए भी वे हनुमान जी की पूजा-पाठ नियमित रूप से करते थे। इससे उनका सम-भावी व्यक्तित्व प्रकट होता है। धार्मिक सहिष्णुता के कारण ही महंत जी विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में देखे जाते हैं। मृदुभाषी एवं विनोदप्रियता उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा था। इसी कारण सभी उनका सम्मान करते हैं।
बिसाहू दास महंत केवल राजनीति ही नहीं बल्कि कला और साहित्य के भी पारखी थे। उनके जीवन में अभिव्यक्ति की जो मिठास थी, उसका कारण छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति एवं साहित्य से उनका गहरा जुड़ाव ही था। महंत जी ने कुटीर उद्योगों को सदैव प्रोत्साहित किया। हथकरघा से निर्मित कोसा वस्त्र को अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक ले जाने में महंत जी की केन्द्रीय भूमिका रही। वे हथकरघा उद्योग से जुड़े बुनकरों के हितचिंतक थे।
बिसाहू दास महंत किसी पद विशेष के लिए नहीं बने थे, बहुत से पद महंत जी के कारण सुषोभित हुए। अपनी ओजस्वी शैली के कारण उन्हें संसदीय जगत का पुरोधा माना जाता है। वे सच्चे अर्थों में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ीया भावों की अभिव्यक्ति थे। वे अत्यंत सहज, सरल, विनम्र किंतु स्वाभिमानी व्यक्ति थे। स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक बार वे मंत्री पद से भी इस्तीफा देने में नहीं चूके। उन्होंने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाषचंद्र्र्र्र सेठी के रूखे व्यवहार से रूष्ट होकर केबिनेट मंत्री का पद छोड़ दिया था। सन् सन् 1977 ई. के विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जब भारी पराजय का मुख देखना पड़ा तब भी बिसाहू दास महंत मूल्य आधारित राजनीति की भूमिका में सक्रिय रहे।
23 जुलाई सन् 1978 ई. को बिसाहू दास महंत का देहावसान हो गया। उनका समग्र व्यक्तित्व हम सबके लिए आज भी प्रेरणादायी है।
कृतज्ञ छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उनकी स्मृति में राज्य स्तरीय ‘स्व. बिसाहूदास महंत सर्वश्रेष्ठ बुनकर सम्मान’ की स्थापना की है। इसके अंतर्गत प्रतिवर्ष राज्य के दो सर्वश्रेष्ठ बुनकरों को दो लाख रूपए की राशि सम्मान स्वरूप प्रदाय की जाती है।
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