शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
मुख्यपृष्ठ > विषय > सामान्य ज्ञान

महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव



बस्तर के काकतीय (चालुक्य) राजवंश के अंतिम शासक और महान आत्म बलिदानी विभूतियों में महाराज प्रवीरचंद भंजदेव जी का नाम ज्योतिर्पुंज के समान दैदीप्यमान है। उनका जन्म 25 जून सन् 1929 ई. को दार्जिलिंग में हुआ था। उनके पिताजी का नाम प्रफुल्लचंद भंजदेव तथा माताजी का नाम प्रफुल्ल कुमारी देवी था। यह महज संयोग ही था कि उनके माता-पिता के नाम के प्रथम शब्द एक ही था। बस्तर का राज सिंहासन प्रफुल्ल कुमारी देवी को विरासत में प्राप्त हुआ था। राजकुमार प्रवीरचंद भंजदेव का पालऩ-पोषण तथा शिक्षा पाश्चात्य प्रभाव में हुआ परंतु अंतःकरण भारतीयता से ओतप्रोत था। सन् 1936 ई. में उनकी माताजी के आकस्मिक निधन पश्चात् उन्हें मात्र सात वर्ष की आयु में राजगद्दी पर बैठाया गया। प्रवीरचंद भंजदेव की शिक्षा-दीक्षा पहले लंदन तथा फिर राजकुमार कॉलेज, रायपुर, डेली कॉलेज, इंदौर तथा मिलिट्री एकेडमी, देहरादून में संपन्न हुई। विद्यार्थी जीवन से ही वे दबंग स्वभाव के थे। वे किसी से भी नहीं डरते थे। पढ़ाई में उनकी गहरी रूचि थी। इतिहास एवं भूगोल उनके प्रिय विषय थे। वे सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेलकूद प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। जुलाई सन् 1947 ई. में वयस्क होने पर प्रवीरचंद भंजदेव को अंगे्रेजों ने शासन के पूर्ण अधिकार सौप दिए। इसी बीच 15 अगस्त सन् 1947 ई. को भारत को आजादी मिली। छत्तीसगढ़ के अन्य देशी रियासतों के राजाओं की भाँति महाराज प्रवीरचंद भंजदेव ने भी अपने राज्य को भारत संघ में विलय करा दिया। सरदार वल्लभभाई पटेल के समक्ष विलीनीकरण प्रपत्र पर हस्ताक्षर करने वाले राजाओं में सबसे पहले महाराज प्रवीरचंद भंजदेव ही थे। ऐसा करके उन्होंने उदारवादी राष्ट्रीय एवं नैतिक दृष्टिकोण का परिचय दिया। प्रवीरचंद भंजदेव के लिए अन्य राजाओं की भाँति प्रीव्हीपर्स की व्यवस्था की गई। वे शासन से प्राप्त प्रीव्हीपर्स की राशि को मुक्तहस्त से जन-कल्याण के कार्यों में खर्च करते थे। वे अपने पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति को भी अपनी मर्जी से जी-भरकर लुटाए तथा सदैव देश की राजनीति में चर्चित रहे। अखबारों की सुर्खियों में उनका नाम अकसर आता। उनके पक्ष-विपक्ष में ढेर सारा कहा व लिखा गया। रियासत के भारत में विलीनीकरण के बाद प्रवीरचंद भंजदेव राजनीति में सक्रिय रहते हुए बस्तर के विधायक चुने गए। उनके क्षेत्र में उन्हीं के समर्थक ही विधायक बनते रहे। कालांतर में वैचारिक मतभेद होने पर प्रवीरचंद भंजदेव ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। शासन से उनका मतभेद इतना उग्र हो गया कि प्रवीरचंद भंजदेव ने बस्तर में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की दलील पेश की। इससे सरकार द्वारा उनके प्रीव्हीपर्स को बंद कर दिया गया तथा उन्हें भूतपूर्व महाराजा की पदवी से भी अलग कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। प्रतिक्रियास्वरूप उनकी भक्त प्रजा विशेषकर आदिवासी लोगों ने आंदोलन कर दिया। पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए। प्रवीरचंद भंजदेव न्यायालय में मुकदमा लड़कर छूटे। उनका शासन से टकराव चलता रहा। अंततः 25 मार्च सन् 1966 को राजमहल गोलीकांड में उन्होंने प्राण-न्यौछावर किए। आदिवासियों के हितों का संरक्षण एवं उन्हें संगठित करने के साथ-साथ उनकी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रवीरचंद भंजदेव अंतिम साँस तक सदैव तत्पर रहे। वे उदारतापूर्वक सबकी सहायता करते थे। उनके कार्य और चिंतन में बस्तर के सीधे-सादे और सरल हृदय के आदिवासियों का उत्थान सर्वोपरि था। प्रवीरचंद भंजदेव अश्वारोहण, टेनिस तथा क्रिकेट के एक अच्छे खिलाड़ी थे। वे अपने क्षेत्र में आयोजित होने वाले विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के लिए उदारतापूर्वक सहयोग करते थे। खेल के मैदान में वे अपने को कभी राजा नहीं समझते थे। वे सबको समान रूप से खिलाड़ी समझते थे। विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली टीमों का वे जगदलपुर नगर की सीमा में जाकर स्वागत करते तथा उनके रहने तथा खाने-पीने की व्यवस्था का स्वयं निरीक्षण करते थे। सन् 1965 ई. में जब बस्तर क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा तो महाराज प्रवीरचंद भंजदेव ने प्रशासन से किसानों की सहायता करने हेतु पत्र लिखा। आवश्यकता के अनुरुप समय पर शासकीय सहायता नहीं मिलने से उन्होंने जनहित में राजमहल में ही साप्ताहिक बाजार लगाने का निर्णय लिया। यहाँ दूर-दराज के क्षेत्र से ग्रामीण आते और सस्ते भाव में साग-भाजी और दैनिक उपयोग की वस्तुएँ खरीदते और बेचते थे। जन समस्याओं के निराकरण हेतु शासन का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रवीरचंद भंजदेव के नेतृत्व में दस हजार महिलाओं ने कलेक्टर का घेराव किया था। प्रवीरचंद भंजदेव साहित्य इतिहास तथा दर्शनशास्त्र के गंभीर अध्येता तथा हल्बी, हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञाता थे। उनकी मेजबानी में ही सन् 1950 ई. में जगदलपुर में मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के चौदहवें वार्षिक अधिवेशन का आयोजन किया गया। अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष स्वयं महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र और अध्यक्ष पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी थे। यह अधिवेशन राजमहल परिसर में ही हुआ। स्वाध्याय प्रवीरचंद भंजदेव की दिनचर्या का अंग था। वे प्रतिदिन तीन-चार घंटे अवश्य पढ़ते। उनका अपना एक निजी ग्रंथालय था। उन्होंने हिंदी तथा अंग्रेजी में अनेक पुस्तकों की रचना की। इनमें प्रमुख हैं- लोहंडीगुड़ा, तरंगिणी, योग के आधार और I PRAVIR THE ADIVASI GOD. प्रवीरचंद भंजदेव सत्ता के प्रति कभी आकर्षित नहीं हुए। उन्होंने एक सच्चे लोकनायक की भाँति सदैव आदिवासी लोगों तथा महिलाओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आजीवन सामाजिक अन्याय एवं जीवन मूल्यों के दमन के विरूद्ध संघर्ष किया। नवीन राज्य की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में तीरंदाजी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राज्य स्तरीय महाराज प्रवीरचंद भंजदेव सम्मान स्थापित किया है। -00-