महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
रामानुज प्रताप सिंहदेव का जन्म 8 दिसंबर सन् 1901 ई. को छत्तीसगढ़ के उत्तर में स्थित कोरिया रियासत की राजधानी बैकुंठपुर में हुआ था। उनके पिता शिवमंगल अत्यंत न्यायप्रिय तथा कर्तव्यनिष्ठ राजा थे। राजा शिवमंगल सिंह हमेशा जन-कल्याण के बारे में सोचते थे। वे प्रतिदिन एक घंटा जनता की समस्याओं को सुनते और यथासंभव उनका समाधान करते थे। राजकुमार रामानुज पाँच साल के होते ही साथ राजसभा में बैठने लगे थे। वे राजसभा की कार्यवाही बड़े ध्यान से देखते-सुनते। उनके बालमन पर पिताजी के कल्याणकारी कार्यों का बहुत प्रभाव पड़ा।
पिताजी के देहावसान के बाद मात्र आठ वर्ष की अल्पायु में रामानुज राजगद्दी पर बैठे। उनके नाबालिग होने के कारण कोरिया को न्यायिक अभिरक्षा के अंतर्गत ले लिया गया। अब राज्य की शासन व्यवस्था रायपुर स्थित पोलिटिकल एजेंट द्वारा अपने अधीक्षक के माध्यम से होने लगी। रामानुज अपनी प्रारंभिक शिक्षा बैकुंठपुर में पूरी कर आगे की पढ़ाई के लिए सन् 1911 ई. में वे रायपुर के राजकुमार कॉलेज में भर्ती हो गए। सन् 1920 ई. में उन्होंने चीफ कालेजेज का डिप्लोमा प्राप्त किया। इसमें उन्होंने पूरे भारत में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी वर्ष छोटा नागपुर की राजकुमारी दुर्गादेवी के साथ उनका विवाह हुआ। विवाह के बाद वे इलाहाबाद के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिए। उन्होंने सन् 1922 ई. में इंटरमीडिएट पास कर इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्रवेश लिया तथा 1924 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। वे अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व और सुडौल शरीर के धनी थे। वे प्रतिदिन भारतीय तथा पाश्चात्य दोनों प्रकार की कसरतें करते थे।
विद्यार्थी जीवन में रामानुज क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। नागपुर में आयोजित चतुष्कोणीय क्रिकेट प्रतियोगिता में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दू दल का प्रतिनिधित्व किए। इसमें वे आरंभिक बल्लेबाज के रूप में महान खिलाड़ी सी. के. नायडू के साथ पारी की शुरूआत करते थे। इलाहाबाद में पं. मदनमोहन मालवीय उनके स्थानीय अभिभावक थे। यहीं वे पं. मोतीलाल नेहरू, पं. जवाहरलाल नेहरू तथा डी.पी. मिश्रा के संपर्क में आए। इन महान विभूतियों के सानिध्य में ही उनको देशभक्ति की प्रेरणा मिली।
पढ़ाई पूरी करने के बाद पाँच जनवरी सन् 1925 ई. को मध्यप्रांत एवं बरार के तत्कालीन गवर्नर सर फ्रेंकस्लाई ने रामानुज प्रताप सिंहदेव को संपूर्ण प्रशासनिक अधिकार सांैप दिए। तत्पश्चात् बैकुंठपुर में उनका विधिवत् राजतिलक हुआ। राज्य की जिम्मेदारी संभालने के बाद रामानुज प्रताप ने अपने पिताजी द्वारा आरंभ की गई विकास की प्रक्रिया जो उनके निधन के बाद शिथिल हो गई थी, उसे आगे बढ़ाया।
रामानुज प्रताप सिंहदेव अपने राज्य को एक आदर्श राज्य के रूप में विकसित करना चाहते थे। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि को सर्वाधिक महत्व दिया। उन्हें विश्वास था कि शिक्षा के माध्यम से ही जनता का विकास संभव है। उन्होंने गाँवों में प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय खोले। महाराज स्वयं विद्यालयों का निरीक्षण करते। निरीक्षण के दौरान दीवान तथा शिक्षा विभाग के अधिकारी भी साथ में रहते थे।
रामानुज प्रताप सिंहदेव के प्रयासों से सन् 1946 ई. में कोरिया राज्य में प्रौढ़ शिक्षा के 64 केंद्र संचालित थे। उन्होंने प्रत्येक विद्यालय में एक-एक भृत्य की भर्ती की थी जो प्रतिदिन स्कूल के काम के साथ ही अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थियों को घर से बुलाकर लाते। सभी बच्चे विद्यालय जाएँ, इसका भरपूर प्रयास किया गया। शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित किया जाता था। निर्धन बच्चों को पाठ्यपुस्तकें तथा कापियाँ निःशुल्क दी जाती थी।
माता-पिता को बच्चों के भोजन की चिंता न रहे और बच्चे स्कूल नियमित रूप से आएँ, इसके लिए सभी बच्चों को स्कूल में चना-गुड़ खाने के लिए दी जाती। उन्होंने नियमित रूप से स्कूली विद्यार्थियों के स्वास्थ्य परीक्षण और डाक्टर के निर्देशानुसार दवाइयों के निःषुल्क वितरण की व्यवस्था की। उन्होंने ऐसे चिकित्सकों की नियुक्ति की जो बारी-बारी से स्कूलों में जाते, बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण व टीकाकरण करते और जरुरत पड़ने पर दवाई भी देते। बच्चों को स्वास्थ्य कार्ड दिया जाता था।
पूरे रियासत के स्कूलों का प्रतिवर्ष एक बार वार्षिक खेलकूद तथा सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था। स्कूलों में स्काउट गाइड सुविधा के साथ-साथ खेल के मैदान भी होते थे। बच्चों में पर्यावरण चेतना जाग्रत करने के उद्देश्य से हर विद्यालय का अपना एक छोटा-सा उद्यान भी होता था। यहाँ बच्चे वृक्षारोपण करते तथा उसकी देखभाल करते।
रामानुज प्रताप सिंहदेव ने बैकुंठपुर में एक हाईस्कूल खोला जो आज शासकीय बहु-उद्देशीय उच्चतर माध्यमिक कहा जाता है। सभी विद्यालयों में उन्होंने एक-एक लघु ग्रंथालय की स्थापना की। इसमें किताबों की अदला-बदली कर स्कूली विद्यार्थियों को पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ उपलब्ध कराई जाती थी। उन्होंने कई ऐसे छात्रावास खोले, जहाँ गरीब बच्चों को निःशुल्क, भोजन, वस्त्र एवं पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती थी। राज्य के बाहर उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले विद्यार्थियों को विशेष छात्रवृत्ति दी जाती थी। उन्होंने राज्य में कई तालाब तथा कुएँ खुदवाए। सिंचाई की व्यवस्था होने से कृषि उपज में भी बढ़ोत्तरी हुई।
रामानुज प्रताप सिंहदेव ने बैकुंठपुर, मनेंद्रगढ़, सोनहत तथा चिरमिरी में चिकित्सालय खोले। सन् 1945 ई. में आयुर्वेदिक दवाइयों के निर्माण हेतु एक दवा निर्माण केंद्र की स्थापना की। मलेरिया के उपचार हेतु शिक्षकों के माध्यम से कुनैन का वितरण किया जाता था। विभिन्न प्रकार के मौसमी तथा संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिए कम्पाउंडर तथा डाक्टर गाँवों का नियमित अंतराल पर भ्रमण भी करते।
रामानुज प्रताप सिंहदेव ने सन् 1925 ई. में सहकारिता आंदोलन के समय किसानों को प्रोत्साहित किया और उन्हें यथा संभव सहायता की। उन्होंने अपने राज्य में छह राजकीय कृषि फार्म बनवाए। यहाँ से किसानों को धान, गेंहूँ, तिलहन एवं दलहन के उन्नत बीजों का विकास कर कृषकों को दिया जाता था। किसानों को न्यूनतम ब्याज पर कृषि उपकरण एवं पशु खरीदने के लिए ऋण उपलब्ध कराया जाता था।
रामानुज प्रताप सिंहदेव के प्रयासों से सन् 1928 ई. में क्षेत्र की पहली कोयला खदान का खरसिया एवं चिरमिरी में शुभारंभ किया गया। यहाँ कामगारों के हित एवं सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए। देश का पहला न्यूनतम वेतन कानून ‘कोरिया अवार्ड‘ उन्होंने ही बनवाया और अपने राज्य में लागू कराया। बाद में इसी के आधार पर भारत सरकार ने ‘वेज बोर्ड फार कोल माइंस वर्कर्स‘ की स्थापना की। उन्होंने परिवहन के विकास हेतु सड़क एवं रेलमार्ग के निर्माण व विस्तार में भी कार्य करवाया। उन्होंने स्वयं वायसराय से इस संबंध में भेंट की। उन्हीं के प्रयासों से सन् 1928 ई. में बिजूरी से चिरमिरी तक रेल्वे लाइन बिछाने का कार्य आरंभ हुआ। सन् 1930 ई. में मनेंद्रगढ़ तक रेलसेवा एवं सन् 1931 ई. में चिरमिरी रेलसेवा प्रारंभ हुआ।
सन् 1931 ई. में लंदन में आयोजित द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में सम्मिलित कांग्रेस दल में भारतीय शासकों का प्रतिनिधित्व रामानुज प्रताप सिंहदेव ने ही किया। प्रतिनिधि मंडल में वे सबसे कम उम्र के थे, किंतु सम्मेलन में उनके उद्बोधन की सभी लोगों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
रामानुज प्रताप सिंहदेव कुशल वक्ता होने के साथ-साथ एक अच्छे लेखक भी थे। उनके लेख समय-समय पर हिन्दी एवं अंग्रेजी के स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। उन्होंने अपने महल में एक समृद्ध ग्रंथालय की स्थापना की थी। वे यहाँ बैठकर पढ़ते-लिखते।
वे सन् 1931 से सन् 1941 तक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के उपाध्यक्ष थे। उनके न्यायप्रिय एवं विनम्र स्वभाव के कारण राज्य का कोई भी नागरिक उनके पास जाने में नहीं हिचकिचाता। वे अत्यंत दयालु, व्यवहार कुशल एवं संवदेनशील राजा थे। सन् 1942 ई. में उनके राज्य में अकाल पड़ा। तब उन्होंने बर्मादेश (वर्तमान म्यंमार) से चावल आयात कर गरीबों में वितरित करने की व्यवस्था की।
15 दिसंबर सन् 1947 ई. को उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल के समक्ष मध्यप्रांत एवं बरार में कोरिया के विलयन अनुबंध पत्र हस्ताक्षर किया। उन्होंने सन् 1948 ई. में मध्य प्रांत, बरार द्वारा नियुक्त प्रषासक को महल को छोड़कर सारे भवन और कोरिया स्टेट खजाने की 1.20 करोड़ रूपये की राशि जमा करा दी। प्रधानमंत्री उनको गवर्नर बनाना चाहते थे। उन्होंने गवर्नर बनना अस्वीकार कर दिया। बाद में वे कोलकाता फिर पुणे चले गए। अब उनका अधिकांश समय चित्रकारी एवं फोटोग्राफी में बीतने लगा।
6 अगस्त सन् 1954 ई. को मुंबई में उनका देहावसान हो गया।
छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में श्रम एवं उत्पादकता वृद्धि के क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिए राज्य स्तरीय महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव सम्मान स्थापित किया है।
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महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव सम्मान
महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव सम्मान
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव का जन्म वर्ष 1901 में हुआ था । आपके पिता का नाम शिवमंगल सिंहदेव एवं माता का नाम रानी नेपाल कुंवर था । वर्ष 1660 के आस-पास आपका परिवार मैनपुरी से कोरिया स्टेट में स्थापित हुआ । वर्ष 1920 में छोटा नागपुर की राजकुमारी दुर्गादेवी के साथ आप वैवाहिक सूत्र में बंधे ।
आप बाल्यकाल से ही प्रतिभावान एवं देश-प्रेमी के रुप में विख्यात रहे । आपकी प्राथमिक शिक्षा राजकुमार कॉलेज, रायपुर में तथा स्नातक की उपाधि वर्ष 1924 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई जहां पं. मोतीलाल नेहरु तथा पं. जवाहरलाल नेहरु के सम्पर्क में आये तथा इन विभूतियों के सानिध्य में ही आपको देश-भक्ति की प्रेरणा प्राप्त हुई । आपने 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी के साध सदस्य के रुप में भाग लिया ।
देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं कारखाना क्षेत्र के श्रमिकों के प्रति संवेदनशील रहने के कारण तत्कालीन कोरिया स्टेट में आपके अथक प्रयासों से वर्ष 1928 में कोयला खदान खरसिया एवं चिरमिरी में प्रारंभ किया गया । वर्ष 1941 में कोरिया स्टेट में संचालित शिक्षण संस्थानों में कक्षा आठवीं तक के बच्चों को मध्यान्ह अल्पाहार में गुड़ - चना देना प्रारंभ किया गया । वर्ष 1946 में पंचायती राज कोरिया स्टेट में प्रथम बार लागू किया गया । शिक्षा के क्षेत्र में यहां संचालित शेक्षणिक केन्द्रों में से 64 केन्द्रों में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम लागू किया गया, आप प्रत्येक शिक्षण केन्द्र का वर्ष में दो बार निरीक्षण स्वयं करते थे । इसी वर्ष कोरिया स्टेट के शहरी क्षेत्रों में कक्षा 5वीं तक अनिवार्य शिक्षा लागू की गई ।
श्रमिकों के प्रति अति संवेदनशील होने के कारण वर्ष 1947 में कोरिया स्टेट द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (कोरिया अवार्ड) पारित किया गया । आपके द्वारा सेन्ट्रल प्राविंस एवं बरार राज्य संविलयन के दौरान वर्ष 1948 में कोरिया स्टेट खजाने की रुपये 1.20 करोड़ की राशि जमा कराई गई । आपका देहावसान 6 अगस्त 1954 को हुआ । छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में श्रम एवं उत्पादकता वृद्धि के क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिये महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव सम्मान स्थापित किया है ।