ठा. प्यारेलाल सिंह
ठा. प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार तथा सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे। उनका जन्म 21 दिसंबर सन् 1891 को राजनांदगाँव जिले के दैहान ग्राम में हुआ था। उनके पिताजी का नाम ठा. दीनदयाल सिंह तथा माताजी का नाम नर्मदा देवी था। ठा. दीनदयाल सिंह शिक्षा विभाग में एक अधिकारी थे।
ठा. प्यारेलाल सिंह की प्रारंभिक शिक्षा राजनांदगाँव में सम्पन्न हुई। उन्होंने रायपुर के गवर्नमेण्ट हाईस्कूल से मैट्रिक तथा हिसलाॅप कॉलेज से इंटरमीडिएट पास किया। इसी बीच उनके पिताजी का देहांत हो गया। पं. नारायण प्रसाद की आर्थिक सहायता से उन्होंने जबलपुर से बी.ए. तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत की परीक्षा पास की। विद्यार्थी जीवन में वे मेधावी तथा राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत थे। वे सिर्फ पढ़ाई-लिखाई में ही नहीं खेलकूद तथा सामाजिक गतिविधियों में भी आगे रहते थे।
ठा. प्यारेलाल सिंह के संघर्ष की शुरूआत उनके विद्यार्थी जीवन से ही हो गई थी। षिक्षकों के अविवेकी निर्णयों और राज परिवारों के बालकों की उद्दण्डता को ठीक करने का बीड़ा उन्होंने उठाया। उनके नेतृत्व में एक बालटोली बनी। सन् 1905-06 ई. में गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित करने के लिए फीस बढ़ा दी गई और यूनिफार्म अनिवार्य कर दिया गया। ठा. प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में छात्रों ने इसके विरूद्ध आंदोलन किया और इसमें सफलता प्राप्त की।
सन् 1906 में ठा. प्यारेलाल सिंह बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और क्रांतिकारी साहित्य का प्रचार करते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की। उन्होंने विद्यार्थी जीवन में ही सन् 1909 में राजनांदगाँव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। यह क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार-प्रसार का अच्छा माध्यम सिद्ध हुआ। सन् 1928 में ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तकालय में ताला लगा दिया।
वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ठा. प्यारेलाल सिंह वकालत करने लगे। पहले उन्होंने दुर्ग में वकालत की फिर रायपुर में। शीघ्र ही उनकी गणना प्रतिभाषाली वकीलों में होने लगी। निर्धन तथा कमजोर लोगों को न्याय दिलाने वे सदैव तत्पर रहते।
अप्रेल 1920 में ठा. प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में राजनांदगाँव के बी.एन.सी. मिल के मजदूरों ने हड़ताल कर दी। यह देश की सबसे लम्बी हड़ताल थी, जो 37 दिनों तक चली। अंत में मजदूरों की माँगें पूरी हुई। इससे मजदूरों की प्रतिवर्ष एक लाख रूपए की आमदनी बढ़ गई। इसी वर्ष गांधीजी के आह्वान पर वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और वकालत छोड़ दी। उन्होंने खादी और स्वदेशी का खूब प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने पं. बलदेव प्रसाद मिश्र के साथ मिलकर राजनांदगाँव में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की थी। 1924 में राजनांदगाँव के मिल मजदूरों ने ठा. प्यारेलाल के नेतृत्व में पुनः हडताल कर दी। कई गिरफ्तारियाँ र्हुइं। उन पर सभा लेने और भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्हें राजनांदगाँव छोड़ने के लिए मजबूर किया गया पर वे मजदूरों की माँगें पूरी होने के बाद ही राजनांदगाँव छोड़े। वे स्थायी रूप से रायपुर में बस गए। उन्होंने पं. सुंदरलाल शर्मा के अंत्योद्धार कार्य में सहयोग किया।
ठा. प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ में शराब भट्ठियों में पिकेटिंग, हिंदू- मुस्लिम एकता, नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक कार्यों का संचालन किया। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेते हुए वे अनेक बार जेल गए तथा यातनाएँ सहीं। मनोबल तोड़ने के लिए उनके घर पर छापा मारकर सारा सामान कुर्क कर दिया गया। उनके वकालत की सनद भी जब्त कर ली गई, परंतु वे अपने मार्ग से नहीं हटे।
सन् 1934 में जेल से छूटते ही ठा. प्यारेलाल सिंह को महाकोशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का मंत्री चुना गया। सन् 1936 में वे पहली बार मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए। राजनैतिक झंझावतों के बीच वे तीन बार (सन् 1937,1940 व 1944) रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए। वे हर बार प्रचंड बहुमत से चुने जाते थे। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई प्रायमरी स्कूल, बालिकाओं के लिए स्कूल, दो नए अस्पताल खोले, सड़कों पर तारकोल बिछवाई और बहुत से कुँए खुदवाए।
छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए ठा. प्यारेलाल सिंह ने 6 जुलाई सन् 1945 ई. को छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना की। वे मृत्युपर्यंत उसके अध्यक्ष रहे।
ठा. प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ कंज्यूमर्स, म. प्र. पीतल धातु निर्माता सहकारी संघ, विश्वकर्मा औद्योगिक सहकारी संघ, तेलघानी सहकारी संघ, ढीमर सहकारी संघ, स्वर्णकार सहकारी संघ आदि अनेक संस्थाओं का निर्माण किया। वे छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के पुरोधा थे।
छत्तीसगढ़ के रियासतों का भारतीय संघ में विलय कराने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी वे सक्रिय रहे।
सन् 1950 ई. में ठा. प्यारेलाल सिंह ने ‘राष्ट्रबंधु’ नामक अर्धसाप्ताहिक का प्रकाशन किया। वे इसके संस्थापक तथा प्रधान सम्पादक थे। वे हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी के विद्वान थे। इतिहास, राजनीति, धर्म, दर्शन के क्षेत्र में उनका ज्ञान अगाध था। ग्रामीणों के बीच वे अपना भाषण छत्तीसगढ़ी तथा सामान्य बोलचाल की भाषा में देते थे।
वैचारिक मतभेदों के कारण ठा. प्यारेलाल सिंह ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और आचार्य कृपलानी जी के द्वारा गठित किसान मजदूर पार्टी में षामिल हो गए। सन् 1952 में वे रायपुर से मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने।
भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को भू-स्वामी बनाने के लिए उन्होंने आचार्य विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आंदोलन छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। वे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के सिपाही के रूप में गाँव-गाँव की पदयात्रा करते तथा मालगुजार एवं बड़े किसानों को भूदान के लिए प्रेरित करते। इसी भू-दान के लिए पदयात्रा करते समय जबलपुर के समीप वे अचानक अस्वस्थ हो गए और 20 अक्टूबर सन् 1954 को उनका निधन हो गया।
राज्य स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए ठा. प्यारेलाल सिंह सम्मान स्थापित किया है।
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