शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
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डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र



बलदेव प्रसाद मिश्र का जन्म 12 सितम्बर सन् 1898 ई. को राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री नारायण प्रसाद मिश्र मालगुजार थे, साथ ही तत्कालीन राजनांदगाँव स्टेट में लोककर्म विभाग के ठेकेदार भी। उनकी माता श्रीमती जानकी देवी धर्मपरायण गृहिणी थीं। बलदेव प्रसाद मिश्र अपनी माँ से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने सन् 1914 ई. में स्थानीय स्टेट हाईस्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए वे नागपुर चले गए। वहाँ उन्होंने एम. ए. तथा एल. एल. बी. की परीक्षा पास की। सन् 1920 ई. में बलदेव प्रसाद राजनांदगाँव लौटे। असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने प्यारेलाल सिंह के साथ मिलकर राजनांदगाँव में स्वदेशी राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और विद्यार्थियों से सरकारी स्कूलों का त्यागकर इस विद्यालय में प्रवेश लेने हेतु आह्वान किया। मिश्र जी इस विद्यालय के अवैतनिक प्रधानपाठक थे। विद्यालय संचालन हेतु आवश्यक धन की व्यवस्था के लिए वे भागवत कथा का पाठ करते। उन दिनों लोग राष्ट्रीय विद्यालय को चंदा देने से कतराते थे। सरकार तथा स्टेट के भारी दबाव के कारण विद्यालय ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। सन् 1922 ई. में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र रायपुर चले गए। वहाँ उन्होंने पं. रविशंकर शुक्ल के सहायक के रुप में वकालत प्रारंभ की। इसमें उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। सन् 1923 ई. में रायगढ़ नरेश चक्रधर सिंह के बुलावे पर वे वहाँ चले गए। वे लगातार सत्रह वर्षों तक क्रमश: नायब दीवान तथा दीवान जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते रहे। अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में मिश्रजी ईमानदारी, निष्पक्षता, चारित्रिक दृढ़ता और अपूर्व कार्यक्षमता के लिए प्रसिद्ध रहे। उन्होंने जन कल्याण के लिए रायगढ़ में स्थाई महत्व के कई कार्य संपन्न कराए। इनमें अनाथालय, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था, संस्कृत पाठशाला, वाणिज्य महाविद्यालय तथा नेत्र चिकित्सालय प्रमुख हैं। उन्होंने राजा चक्रधर सिंह के नाम पर एक गौशाला का निर्माण कराया। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की प्रेरणा से रायगढ़ में गणेषोत्सव नए तथा आकर्षक ढंग से मनाया जाने लगा। इसमें देशभर के संगीतकार, कलाकार एवं साहित्यकार भाग लेने लगे। रायगढ़ में कवि सम्मेलन की शुरुआत उन्होंने ही की। वे टाउन हाल में कवि सम्मेलन का आयोजन कराते जिसमें पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, भगवती चरण वर्मा, पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय, पं. मुकुटधर पाण्डेय जैसे दिग्गज कवि शामिल होते। तत्कालीन रायगढ़ रियासत में बिताए सत्रह वर्ष डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय रहा। यहीं पर उन्होंने ‘तुलसी दर्शन’ जैसे महाकाव्य और षोधप्रबंध का लेखन कार्य किया, जिस पर उन्हें सन् 1939 ई. में नागपुर विश्वविद्यालय ने डी.लिट्. की उपाधि प्रदान की थी। यहीं पर उन्होंने मृणालिनी परिणय, समाज सेवक, मैथिली परिणय, कोषल किषोर, मानस मंथन, जीवन संगीत, जीवविज्ञान और साहित्य लहरी जैसे उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की। सन् 1940 ई. में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र बीमार पड़ गए। इस कारण इन्होंने दीवान का पद छोड़ दिया। दीवान पद से मुक्त होकर उन्होंने एम. बी. आर्ट्स कॉलेज, बिलासपुर; दुर्गा महाविद्यालय, रायपुर; एवं कल्याण महाविद्यालय, भिलाई में अध्यापन कार्य किया। वे नागपुर विश्वविद्यालय में दस वर्षों तक हिंदी के अवैतनिक विभागाध्यक्ष तथा 5 मार्च सन् 1970 से 4 मार्च सन् 1971 ई. तक इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के उप कुलपति रहे। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र प्रयाग, लखनऊ, आगरा, दिल्ली, पंजाब, पटना, कलकत्ता, सागर, जबलपुर, नागपुर, वाराणसी, हैदराबाद तथा पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से सम्बद्ध रहे तथा इन विश्व विद्यालयों के पी-एच.डी. व डी. लिट्. के शोध परीक्षक रहे। वे 100 से अधिक शोध ग्रंथों के निरीक्षक रहे। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र रायपुर, खरसिया तथा राजनांदगाँव की नगर पालिकाओं के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष एवं खुज्जी के विधायक के रुप में जन कल्याण के अनेक कार्य करवाए। उनकी समाज सेवा में अभिरुचि देखकर पं. रविशंकर शुक्ल ने उन्हें ‘मध्यप्रदेश भारत सेवक समाज’ का संस्थापक बनाकर उसे संगठित करने का दायित्व सौंपा। बाद में पं. जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें ‘भारत सेवक समाज’ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ले लिया तब उनका कार्यक्षेत्र राष्ट्रीय स्तर का हो गया। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र जहाँ-जहाँ भी रहे वहाँ उन्होंने शासन के सहयोग से अनेक कार्य करवाए। जैसे सड़क निर्माण, नहरें बनाना, कुएँ खुदवाना, स्कूल कॉलेज खोलना एवं भवन निर्माण कराना। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ग्रामीण क्षेत्रों में रामायण का प्रवचन देकर राष्ट्रीय एकता तथा नैतिक जीवन की ओर लोगों को आकर्षित करते। मर्यादा पुरुषोŸाम भगवान श्रीरामचंद्र जी उनके जीवन के साथ-साथ साहित्य के भी आराधक थे। वे मानस प्रसंग के एक यषस्वी प्रवचनकार थे। उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी प्रवचन के लिए भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसादजी ने आमंत्रित किया था। डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ‘मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के तीन बार (सागर, नागपुर तथा रायपुर) अध्यक्ष बने। वे अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तुलसी जयंती समारोह के अध्यक्ष, गुजरात प्रदेषीय एवं मुंबई प्रदेशीय राष्ट्रभाषा सम्मेलन एवं पदवी दान महोत्सव के अध्यक्ष बने। सन् 1946 में डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की अमरकृति महाकाव्य ‘साकेत संत’ प्रकाशित हुई। उन्होंने अस्सी से अधिक ग्रंथों की रचना की। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में लिखते थे। गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं पर उनका समान अधिकार था। प्रशासन, समाज-सेवा और शिक्षा आपके कर्मक्षेत्र रहे तथा साहित्य जीवन साधना रही है। 5 सितम्बर सन् 1975 को उनका देहांत हो गया। छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा उनकी स्मृति में राज्य स्तरीय डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र स्मृति शिक्षक सम्मान स्थापित किया गया है। -00-