पं. रविशंकर शुक्ल
मध्य प्रदेश के निर्माता के रूप में विख्यात पं. रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त सन् 1877 ई. को सागर में हुआ था। उनके पिताजी का नाम जगन्नाथ प्रसाद तथा माताजी का नाम तुलसी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सागर में ही हुई। बाद में उनके पिताजी अपने कारोबार के सिलसिले में राजनांदगाँव चले गए। कुछ समय बाद वे रायपुर में आकर बस गए। रविशंकर शुक्ल ने सन् 1895 ई. में रायपुर में मैट्रिक, सन् 1897 ई. में जबलपुर में इंटरमीडिएट, सन् 1899 ई. में नागपुर के हिसलॉप कॉलेज में बी.ए. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने जबलपुर से एल. एल. बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
बी.ए. करने के बाद रविशंकर शुक्ल की नियुक्ति चीफ कमिश्नर के दफ्तर में हुई। सन् 1901 में उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी। वे जबलपुर के हितकारिणी स्कूल में शिक्षक बन गए और कानून की शिक्षा ग्रहण करने लगे। सन् 1902 में रविशंकर शुक्ल का विवाह भवानी देवी से हुआ। विवाह के बाद वे खैरागढ़ आ गए। यहाँ उनकी नियुक्ति एक हाईस्कूल में प्राचार्य के पद पर हो गई। उन्होंने बस्तर के युवराज रुद्रप्रताप देव, कवर्धा के युवराज यदुनंदन सिंह तथा पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को पढ़ाया था। वे एक कुशल अध्यापक थे।
सन् 1907 ई. में रविशंकर शुक्ल ने राजनांदगाँव में वकालत शुरु की। कुछ ही महीनों बाद वे रायपुर आकर वकालत करने लगे। इस बीच उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेना शुरु कर दिया। वे सन् 1910 ई. में प्रयाग कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित हुए। राष्ट्रसेवा के उद्देश्य से उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश लिया।
सन् 1912 ई. में रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से कान्य कुब्ज महासभा की स्थापना हुई। उन्होंने रायपुर में कान्य कुब्ज छात्रावास की स्थापना की तथा कान्य कुब्ज मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया।
वे लोकमान्य बाल गंगाधार तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने तिलक और एनीबीसेण्ट द्वारा संचालित होमरुल लीग आंदोलन का समर्थन किया। रोलेक्ट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकांड से आहत होकर उन्होंने अपना संपूर्ण समय और शक्ति देश को आजाद कराने के लिए लगाने का संकल्प किया।
रविशंकर शुक्ल ने सन् 1920 ई. में कोलकाता में हुए कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में सक्रिय रुप से भाग लिया और स्वाधीनता आंदोलन को मध्यप्रांत में प्रसारित किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी के प्रचार हेतु उन्होंने स्वयं खादी वस्त्र धारण करना प्रारंभ किया। अंग्रेजी शिक्षा के बहिष्कार एवं राष्ट्रीय शिक्षा के प्रचार के लिए उन्होंने जनवरी सन् 1921 ई. में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना करवायी।
मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का पाँचवा अधिवेशन 4 मार्च सन् 1922 को नागपुर में शुक्ल जी की अध्यक्षता में हुआ। उन्होंने इसमें हिन्दी को देश की राजभाषा बनाने का विचार प्रमुखता के साथ रखा। उन्होंने ‘आयरलैण्ड का इतिहास’ लिखा जो ‘उत्थान’ में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ।
सन् 1921 में शुक्ल जी को अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति का सदस्य चुना गया। इसी वर्ष उनका रायपुर जिला परिषद् के सदस्य के रुप में चुनाव किया गया। सन् 1922 में रायपुर जिला परिषद के सम्मेलन में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को बिना टिकट के प्रवेश नहीं देने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। इससे नगर में उत्तेजना फैल गई। बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया।
सन् 1927 से 1936 ई. तक शुक्ल जी रायपुर जिला परिषद् के अध्यक्ष रहे। उन्होंने परिषद् के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण एवं स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्षेत्र में वातावरण तैयार किया। अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने जिले भर में स्कूलों का जाल फैला दिया। उन्होंने स्कूली बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए स्कूलों में वन्दे मातरम् का गायन और राष्ट्रीय झण्डे को फहराना अनिवार्य कर दिया था। सन् 1924 में वे पहली बार प्रांतीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
सन् 1926 में उन्हें नागपुर विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी का सदस्य मनोनीत किया गया। उन्होंने गाँधीजी द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन का रायपुर में नेतृत्व उन्होंने किया और कई बार जेल की यातनाएँ सहीं। नवम्बर सन् 1933 ई. में गाँधीजी के छत्तीसगढ़ प्रवास में वे शुक्ल जी के बूढ़ापारा स्थित निवास में ठहरे थे।
क्षेत्र में राजनैतिक व सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए सन् 1935 ई. में उन्होंने साप्ताहिक महाकौशल का प्रकाशन आरंभ किया। शुक्ल जी सन् 1936 ई. में विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए तथा डॉ. खरे मंत्रिमंडल में शिक्षामंत्री बने। उन्होंने महात्मा गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा सिद्धांत के अनुरुप विद्यामंदिर योजना शुरु की। पहली विद्यामंदिर का शिलान्यास गाँधीजी ने किया। इस योजना का मूलमंत्र शिक्षा को स्वावलंबी बनाना था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों द्वारा अपनायी जा रही नीति के विरोध में गाँधीजी के आदेश पर उन्होंने सन् 1939 ई. में मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया। सन् 1940 ई. में गाँधीजी के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेते हुए वे पुनः गिरफ्तार किए गए। सन् 1942 ई. में भारत छोड़ो आंदोलन का छत्तीसगढ़ में शुक्लजी ने ही नेतृत्व किया। सन् 1942 ई. को उन्हें मलकापुर रेलवे स्टेशन में गिरफ्तार किया गया। 13 जून सन् 1945 ई. को उन्हें जेल से रिहा किया गया।
सन् 1946 ई. के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रांत में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। पं. रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में मंत्रीमंडल का गठन किया गया। 15 अगस्त सन् 1947 ई. को आजादी के अवसर पर शुक्ल जी ने नागपुर के सीताबर्डी के किले में तिरंगा झण्डा फहराया। सन् 1956 ई. तक वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। देश की स्वतंत्रता के बाद शुक्ल जी ने छत्तीसगढ़ की सभी चैदह रियासतों का मध्य प्रदेश में विलय कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सागर में हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, रायपुर में संस्कृत, विज्ञान और आयुर्वेदिक महाविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संविधान सभा के सदस्य के रुप में पं. रविशंकर शुक्ल ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1 नवम्बर सन् 1956 ई. को नए राज्य मध्यप्रदेश का गठन हुआ तथा पं. रविशंकर शुक्ल ही नए राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक योजनाएँ बनाई तथा उनका समुचित क्रियान्वयन किया। 31 दिसम्बर सन् 1956 ई. को हृदयाघात से उनका देहावसान हो गया।
छत्तीसगढ़ की उन्नति और यहाँ सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए उनके प्रयास लम्बे समय तक याद किए जाएँगे। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए उल्लेखनीय कार्यों के कारण कालान्तर में रायपुर में स्थापित विश्वविद्यालय का नामकरण उन्हीं के नाम पर किया गया है। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिए पं. रविशंकर शुक्ल सम्मान स्थापित किया है।
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