शहीद पंकज विक्रम
शहीद राजीव पांडेय
शहीद विनोद चौबे
महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव
नगर माता बिन्नीबाई सोनकर
प्रो. जयनारायण पाण्डेय
बिसाहू दास महंत
हबीब तनवीर
चंदूलाल चंद्राकर
मिनीमाता
गजानन माधव मुक्तिबोध
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
दाऊ मंदराजी
महाराजा रामानुज प्रताप सिंहदेव
संत गहिरा गुरु
राजा चक्रधर सिंह
डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र
पद्यश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय
पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
यति यतनलाल
पं. रामदयाल तिवारी
ठा. प्यारेलाल सिंह
ई. राघवेन्द्र राव
पं. सुन्दरलाल शर्मा
पं. रविशंकर शुक्ल
पं. वामनराव लाखे
पं. माधवराव सप्रे
वीर हनुमान सिंह
वीर सुरेंद्र साय
क्रांतिवीर नारायण सिंह
संत गुरु घासीदास
छत्तीसगढ़ के व्यक्तित्व
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पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी



पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के महान साहित्यकारों में से एक थे। उन्होंने देश की सबसे प्रतिष्ठित एवं कालजयी साहित्यिक पत्रिका सरस्वती का संपादन कर राज्य का गौरव बढ़ाया था। उनका जन्म 27 मई सन् 1894 ई. को राजनांदगाँव के खैरागढ़ गाँव में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। पदुमलाल पुन्नालाल की प्रारंभिक शिक्षा खैरागढ़ में ही हुई। जब वे मिडिल स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे तो उनके प्रधानपाठक पं. रविशंकर शुक्ल थे। बाद में वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पदुमलाल विद्यार्थी जीवन में एक मेधावी छात्र थे। प्रायमरी स्कूल पास करने के बाद ही उन्हें कथा-कहानी का चस्का लग गया और वे स्कूल से भागकर ष्मषान के एकांत में चंद्रकांता उपन्यास पढ़ते थे। इसी बीच उन्हें लिखने की भी रुचि पैदा हो गई। 1911 में एक अंग्रेजी कहानी का हिंदी अनुवाद हितकारिणी में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1912 में पदुमलाल पुन्नालाल ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने सेंट्रल हिंदू कॉलेज, काशी में प्रवेश लिया। यहीं से उन्होंने सन् 1916 ई. में बी.ए. पास किया। काशी में उन्हें पं. मदनमोहन मालवीय, पारसनाथ सिंह तथा आत्माराम खरे जैसी महान विभूतियों का सान्निध्य मिला। इसी बीच उनका विवाह लक्ष्मीदेवी से हुआ। वे एक आदर्ष गृहिणी थीं। उन्होंने घर एवं परिवार का संपूर्ण दायित्व अपने ऊपर लेकर बख्शीजी को सांसारिक उत्तरदायित्वों से पूरी तरह मुक्त कर दिया जिससे कि वे लिखने-पढ़ने में अपना सारा समय लगा सकें। यही कारण है कि बख्शी जी उन्हें लक्ष्मी नहीं गृहलक्ष्मी कहते थे। बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद ही पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की नियुक्ति तत्कालीन राजनांदगाँव स्टेट के एक हाईस्कूल में शिक्षक के पद पर हो गई। उनकी रचनाएँ ‘हितकारिणी’, ‘सरस्वती’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपती रहीं। साहित्यिक अभिरूचि होने से वे सन् 1920 ई. में इलाहाबाद चले गए। वे सरस्वती के संपादक नियुक्त किए गए। यह इंडियन प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित होती थी। सरस्वती उस समय की सर्वश्रेष्ठ पत्रिका मानी जाती थी। इसमें किसी रचना का प्रकाशित होना उन दिनों साहित्यकारों के लिए बड़े गौरव की बात होती थी। इनके संपादन में युग बदल गया। द्विवेदी युग ने अपना स्थान छायावादी युग को दे दिया। जयषंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का स्वागत पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने किया। पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने हिंदी में मौलिक कहानी लेखन को प्रोत्साहित किया। इसी समय उनका आलोचक तथा निबंधकार रूप भी सामने आया। वे स्वभाव से सीधे-सादे किंतु स्वाभिमानी व्यक्ति थे। जैसे-जैसे उनकी प्रतिभा चमकने लगी उनके विरोधियों की संख्या भी बढ़ने लगी। जब उनके स्वाभिमान को चोट पहुँची तो उन्होंने सन् 1925 ई. में सरस्वती से त्यागपत्र देकर खैरागढ़ लौट आए। सन् 1927 ई. में पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी को पुनः सरस्वती के प्रमुख संपादक के रूप में नियुक्त कर इलाहाबाद बुला लिया गया। सन् 1929 ई. तक उन्होंने इस दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। उनके संपादन में सन् 1928 ई. में सरस्वती का विशेषांक बड़ी सज-धज के साथ प्रकाशित हुआ। सन् 1929 में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने सरस्वती से त्यागपत्र देकर अध्यापन को अपनी जीविका के लिए चुना। सन् 1934 ई. तक उन्होंने कांकेर में अध्यापन किया। सन् 1935 ई. में वे अपने पैतृक ग्राम खैरागढ़ आ गए और सन् 1949 ई. तक विक्टोरिया हाईस्कूल, खैरागढ़ में अंग्रेजी अध्यापक के रूप में कार्य किया। इनका संबंध इंडियन प्रेस से लगातार बना रहा। उन्होंने इंडियन प्रेस के लिए कुछ पाठ्यपुस्तकें संपादित किए। इस बीच उनकी पुस्तकें ‘प्रदीप’ और ‘अश्रुदल’ प्रकाशित हुई। उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक ‘प्रायष्चित’ थी। यह बेल्जियम लेखक मारिस मेटरलिक के नाटक का हिंदी अनुवाद था। बख्शी जी 1952 से 1956 तक खैरागढ से ही सरस्वती का संपादन करते रहे। 1958-59 में ‘षतदल’ तथा कहानी संग्रह ‘झलमला’ प्रकाशित हुई। बख्शी जी सन् 1949 से 1957 ई. तक खैरागढ़ राजकुमारियों के ट्यूटर रहे। उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए उन्हें सन् 1959 ई. में राजनांदगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त किया गया। यद्यपि वे केवल बी.ए. तक पढ़े थे पर उनके निबंध एम.ए. की कक्षाओं में पढ़ाए जाते थे। वे स्वयं एम.ए. के विद्यार्थियों को पढ़ाते भी थे। सन् 1949 ई. में पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 1950 ई. में वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति चुने गए। उन्होंने कुछ समय तक रायपुर से निकलने वाले दैनिक समाचार पत्र महाकोषल का संपादन किया था। सन् 1960 ई. में सागर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी. लिट्. की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया गया। उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सम्मानित किया गया। बख्शी जी ने अपना साहित्यिक जीवन एक कवि के रूप में प्रारंभ किया था किंतु विशेष ख्याति मिली एक निबंधकार के रूप में। उनके प्रमुख निबंध संग्रह हैं- विश्व साहित्य, पंचपात्र, हिंदी साहित्य विमर्श, साहित्य चर्चा, मंजरी, बिखरे पन्ने, हिंदी कथा साहित्य, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, समस्या और समाधान, नवरात्र, हिंदी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा। उनके लिखे हुए भावपूर्ण निबंध कारी के आधार पर दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ने कारी लोकनाट्य बनाया जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली। बख्शी जी की कहानी झलमला कालजयी कहानी मानी जाती है। 28 दिसंबर सन् 1971 ई. को रायपुर में उनका देहावसान हो गया। वे एक सफल सम्पादक, भावुक कवि, कुशल कहानीकार, तटस्थ आलोचक एवं आदर्ष शिक्षक थे। वे राजनीति एवं दलबंदियों से दूर रह कर जीवन पर्यन्त साहित्य सेवा में लगे रहे। उनके सभी मित्र उन्हें मास्टर जी कहकर संबोधित करते थे। उनकी इच्छा थी कि वे इस जन्म में तो मास्टरजी रहें ही अगले जन्म में भी मास्टर जी ही बनें। यही कारण है कि उनकी स्मृति में छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा राज्य स्तरीय पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी स्मृति शिक्षक सम्मान स्थापित किया गया है। कहानी में निबंध और निबंध में कहानी के समन्वय की शैली के जन्मदाता पं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के नाम पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में बख्शी शोधपीठ तथा भिलाई (छत्तीसगढ़) में बख्शी सृजनपीठ की स्थापना की गई है। -00-