छत्तीसगढ़ का नामकरण
इस अंचल का नाम ' छत्तीसगढ़ ' क्यों पड़ा, यह विचारणीय प्रश्न है । क्या इस क्षेत्र में अवस्थित गढ़ों का विशेष महत्व था ? क्या यहां 36 (छत्तीस) प्रसिद्ध गढ़ थे ? कहीं ऐसा तो नहीं वनप्रांतर होने के कारण छोटे - छोटे किले रहे हों , जिनमें 36 किलों ( दुर्ग ) की प्रधानता रही हो ।
छत्तीसगढ़ ' नाम कब से पड़ा इसका उल्लेख प्राचीन ऐतिहासिक अथवा धार्मिक ग्रंथों में नहीं मिलता । यही कारण है विद्वानों द्वारा विभिन्न मत प्रस्तुत किये जाते रहे हैं । वैसे इस भू – भाग का प्राचीन नाम कोसल है । डॉ . हीरालाल ने छत्तीसगढ़ का पुराना नाम दक्षिण कोसल ' तथा सी.सी.वैद्य व प्रयागदत्त शुक्ल ने ' कोसल ' बतलाया है । प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथ वाल्मीकि रामायण में भी दो कोसल उत्तर व दक्षिण का उल्लेख हुआ है । पाणिनी ' ने भी अपने व्याकरण में कोसल तथा कालिदास ने रघुवंश ' में कोसल व उत्तर कोसल का प्रयोग किया है । भारतीय साहित्य के अलावा हवेनसांग ( चीनी यात्री ) के यात्रा विवरण से भी दक्षिण - कोसल की जानकारी मिलती है ।
अभिलेखीय साक्ष्यों के अंतर्गत दक्षिण कोसल नाम के संबंध में समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति , सोमेश्वर देव के कुरूसपाल शिलालेख (1069 ई.) व जाजल्लदेव प्रथम के रतनपुर शिलालेख से भी जानकारी प्राप्त होती है । जबकि जाजल्ल के पिता पृथ्वीदेव प्रथम के रायपुर ताम्रपत्र (1065 ई.) में इस क्षेत्र को ' कोसल ' कहा गया । इसके अलावा सत्रहवीं शताब्दी के आंचलिक कवि गंगाधर मिश्र ने अपने संस्कृत महाकाव्य ' कोसलानंद महाकाव्यम् ' में इसे दक्षिण कोसल ' कहा है । इससे विदित होता है कि यह क्षेत्र सत्रहवीं शताब्दी पर्यन्त दक्षिण कोसल के नाम से विदित होता रहा । वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रांत दक्षिण कोसल का मध्य भाग था ।
लेकिन डॉ. कनिंघम ने दक्षिण कोसल का पुराना नाम ' महाकोसल ' बताया है जबकि लाल प्रद्यम्न सिंह ने महाकोसल को ' छत्तीसगढ़ ' माना, किंतु महाकोसल नाम कब पड़ा इसका कोई विवरण प्राप्त नहीं होता और कनिंघम ने भी इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं बतलाया ।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार छत्तीसगढ़ को ' महाकांतार ' तथा दण्डकारण्य भी स्वीकार किया जाता है ।
छत्तीसगढ़ के नामकरण का प्रश्न इतिहास में विवादास्पद है तथा अंचल का नाम छत्तीसगढ़ कैसे पड़ा इस संबंध में विद्वानों में विभिन्न धारणाएं हैं । कुछ विद्वान छत्तीसगढ़ को ' चेदिसगढ़ ' का बिगड़ा रूप मानते हैं । ए. ई. नेल्सन ने चेदि वंश की शाखा का राज्य क्षेत्र होने के कारण इसे चेदिस वंशीय क्षेत्र और फिर बिगड़कर ' छत्तीसगढ़ बनने का तर्क प्रस्तुत किया है । इसके लिए उन्होंने रतनपुर के कलचुरि शासक जाजल्लदेव द्वितीय को आधार बनाया है । डॉ. रायबहादुर हीरालाल भी छत्तीसगढ़ को ' चेदिसगढ़ ' का अपभ्रंश रूप मानते हैं, किंतु उन्होंने ' चेदिसगढ़ ' से ' छत्तीसगढ़ बनने का भाषा वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत नहीं किया ।
एक अन्य तर्क कनिंघम के सहायक मि. बेगलर का है जिन्होंने 1873-74 ई. में इस क्षेत्र का सर्वेक्षण किया था । आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया 1881-82 की रिपोर्ट में बेगलर ने इसके नामकरण के संबंध में एक किंवदंती का उल्लेख किया है कि द्वापर में जरासंध के शासनकाल में छत्तीस चमारों का परिवार इस क्षेत्र में आया , इसके बाद उनकी प्रमुखता के कारण यह क्षेत्र ' छत्तीस घर वाला क्षेत्र ' कहलाया जो धीरे - धीरे छत्तीसगढ़ हो गया । लेकिन इतिहास को इस प्रकार का तर्क मान्य नहीं हो सकता, इससे केवल विकल्पों की संख्या बढ़ सकती है ।
इसके नामकरण के संदर्भ में एक अन्य तर्क यह है कि रतनपुर नगरी में ' छत्तीस क्षत्रिय कुलों ने राज्य किया . जिसका उल्लेख रतनपुर के सुकवि गोपाल मिश्र व बाबू रेवाराम ने अपनी रचनाओं में ' छत्तीस कुल ' के नाम से किया है, लेकिन यह तर्क की कसौटी पर उतना खरा नहीं उतरता ।
इसके अलावा डॉलमी के अनुसार इसका प्राचीन नाम ' अधिष्ट्री ' था जो अधिष्ठान पर्वत के दक्षिण में अवस्थित था । जनरल कनिंघम ने इसकी ( छत्तीसगढ़ ) व्युत्पत्ति ' आधिश्ठी ' या ' अधिश्ठात्री गढ़ ' से की है, जिसका बिगड़ा रूप कालांतर में ' अधिष ' से छत्तीस हो गया और इस क्षेत्र को ' छत्तीसगढ़ ' कहा गया ।
अत्यंत महत्वपूर्ण तर्क छत्तीसगढ़ या किलों से संबंधित है, क्योंकि सच्चाई यह जान पड़ती है कि छत्तीसगढ़ के नामकरण में छत्तीसगढ़ों का ही आधार है । ऐसा कहा जाता है कि रतनपुर राज्य के अंतर्गत छत्तीसगढ़ थे और उनकी सूची एक अत्यंत ही विश्वसनीय एवं स्थानीय लेख से प्राप्त हुई है । इसके अलावा रेवाराम बाबू के अप्रकाशित ग्रंथ तवारीख ए हैह्यवंशी राजाओं की ' में भी छत्तीस ( 36 ) गढ़ों की संख्या दी गई है । इसमें रतनपुर राज्य की शाखा के साथ - साथ रायपुर शाखा का भी उल्लेख हुआ है । वर्णित गढ़ों का अस्तित्व छत्तीसगढ़ में आज भी विद्यमान है , परंतु उनके नाम और रूपों में समयानुसार किचित परिवर्तन हो गया है । ब्रह्मदेव के खल्लारी अभिलेख में भी रायपुर के 18 गढ़ों का उल्लेख है । रायपुर और बिलासपुर के गजेटियरों में भी इन गढ़ों का उल्लेख हुआ है और मि . चिशम् जो कि बंदोबस्त अधिकारी ( बिलासपुर ) थे , ने भी अपने रिकार्ड में इसका उल्लेख किया है , जिसकी प्रामाणिकता को अभी तक किसी ने अस्वीकार नहीं किया है । 18-18 गढ़ मिलकर ' छत्तीसगढ़ ' के नाम की सार्थकता को सिद्ध करते हैं । संबलपुर का राज्य और करौद ( कालाहांडी ) भी 18-18 गढ़ों का माना जाता है । अतः यह तर्क इस क्षेत्र के नामकरण के लिये अधिक प्रामाणिक और उचित प्रतीत होता है । गढ़ों की संख्या को विद्वानों ने अलग - अलग बतलाया है और उनके अनुसार यह स्वीकार किया गया है कि उनकी संख्या समयानुसार कम अधिक होती रही । इस तरह छत्तीसगढ़ के नामकरण के संदर्भ में जितने भी मत प्रस्तुत किए गये हैं , वे प्राकल्पनाएं मात्र हैं , इनमें से यही प्राकल्पना सत्य के अधिक निकट प्रतीत होती है कि इस क्षेत्र का नाम छत्तीसगढ़ 36 गढ़ अर्थात् किले होने से पड़ा ।
साहित्य में भी ' छत्तीसगढ़ ' नाम का उल्लेख हुआ है । इस नाम का सर्वप्रथम उल्लेख 1497 ई. में खैरागढ़ के राजा ' लक्ष्मीनिधि राय ' के चारण कवि दलराम राव ' की रचना में पाया जाता है । इसका द्वितीय बार प्रयोग संवत् 1689 विक्रमी अर्थात् 1746 ई. में कवि कुल दिवाकर ' गोपाल मिश्र ' द्वारा अपनी रचना ' खूब तमाशा ' में करना प्राप्त होता है । इसके बाद लगभग 150 वर्षों बाद 1896 ई. में बाबू रेवाराम अपनी कृति ' विक्रम विलास ' ( सिंहासन बत्तीसी के पद्यानुवाद ) में इसका प्रयोग किया है ।
तर्क चाहे जितने हों ' छत्तीसगढ़ ' नाम पूर्णतः आधुनिक युग की देन है । 18 वीं शताब्दी के मध्य तक इसका नाम छत्तीसगढ़ प्रचलित हो चुका था । मुगलकाल में यह रतनपुर राज्य के नाम से जाना जाता था । अबुल फजल ने ' आइने अकबरी ' में इसे ' रतनपुर राज्य ' पुकारा है । संभवतः मराठा काल में इसका नाम ' छत्तीसगढ़ ' पड़ा हो , क्योंकि इस काल में गढ़ एक प्रशासनिक इकाई मानी गयी थी , ( जिसके अंतर्गत सिद्धांततः 84 गांव होते थे ) और कुल गढ़ों की संख्या उस समय 36 रही हो । शासकीय आधार पर इस नाम का प्रस्ताव कैप्टन ब्लंट ' ने 1795 में सर्वप्रथम किया था , जिसे नागपुर दरबार में पदस्थ ब्रिटिश रेजीडेंट जेनकिंस ने ' जमींदार्स ऑफ छत्तीसगढ़ ' लिखना आरंभ कर दिया । आगे चलकर इस क्षेत्र का ' छत्तीसगढ़ नाम लोकप्रिय हो गया ।
प्राचीन काल में इस क्षेत्र को दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था। उल्लेख 'रामायण' और 'महाभारत'।यहां राज्य करने वाले प्रमुख स्थानी राजवंशों में वाकाटकों की एक शाखा के साथ नल, राजर्षितुल्य, शरभपुरी, पाण्डु, बाण, नागवंशी, छिंदक नागवंश (बस्तर) और सोमवंश प्रमुख हैं। नलवंश का अपने समकालीन वाकाटक के साथ लंबा संघर्ष चला।
कलचुरी शासको ने सबसे अधिक वर्ष ८७५ ई. से १७४१ ई. तक शासन किया। १७४१ ई. से १८५४ ई. तक मराठा शासन था "छत्तीसगढ़" मराठा साम्राज्य के समय के दौरान लोकप्रिय था और सबसे पहले आधिकारिक दस्तावेज में छत्तीसगढ़ शब्द का इस्तेमाल १७९५ ई. में किया गया था। १८५४ ई. से अंग्रेजो का शासन एवं राजधानी रायपुर बनाया गया । १९०५ में संभलपुर बंगाल में चला गया और सुरगुजा छत्तीसगढ़ का हिस्सा बन गया। १ नवम्बर २००० ई. में मध्यप्रदेश से विभाजित होकर छत्तीसगढ़ भारत का २६ वाँ राज्य बना।
१९७३ गजेटियर में ३६ गढ़ो की स्तिथि बताइ गई।
छत्तीसगढ़ शब्द:
छत्तीसगढ़ शब्द का प्रथम प्रयोग वर्ष १४८७ ई. में चारण कवी दलराम राव ने किया था। रचना की पंक्ति :
लछ्मी निधि राय सुनो चित्त दे,
गढ़ छत्तीस में न गढ़ैया रही........
लछ्मीनिधि खैरागढ़ के राजा थे।
छत्तीसगढ़ शब्द का द्वितीय एवं राजनितिक संदर्भो में प्रथम प्रयोग वर्ष १७४६ ई. में रतनपुर के राजा राजसिंहदेव ( १६८९ ई. - १७१२ ई. ) के दरबारी कवी गोपाल मिश्र ने अपनी रचना 'खूब तमाशा' में किया था। उन्होंने इस छेत्र को 'छत्तीसगढ़' नाम से सम्बोधित किया था।
आधुनिक छत्तीसगढ़