मराठा शासन में ब्रिटिश - नियंत्रण (1818-1830 ई.)
छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश प्रशासन का सूत्रपात
ब्रिटिश नियंत्रण की प्रस्तावना -19 वीं शताब्दी के आरंभ तक अंग्रेज भारत की प्रथम शक्ति बन चुके थे । पेशवा एवं मराठा सरदारों से सहायक संधि कर अंग्रेजों ने मराठा शक्ति को क्षीण कर दिया था । फिर भी मराठा अंग्रेजों के भारत में एकक्षत्र शासन के मध्य एक बहुत बड़ा अवरोध थे । उत्तर व दक्षिण में स्थापित अंग्रेजी सत्ता के मध्य नागपुर का भोंसला राज्य अब तक एक महत्वपूर्ण प्रतिद्वंद्वी बन चुका था । अंग्रेज नागपुर राज्य पर अपना प्रभाव स्थापित करने हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते थे. कितु रघुजी द्वितीय की दूरदर्शिता के कारण उनके जीवित रहते अंग्रेज अपने प्रभाव का विस्तार नहीं कर सके । 22 मार्च, 1816 को रघुजी द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् राज्य में सत्ता संघर्ष आरंभ हो गया । राज्य में दो प्रतिद्वंद्वी दल सक्रिय हो गये । प्रथम दल के नेता अप्पा साहब थे व दूसरे दल के बाँकाबाई और धरमजी थे । मराठा दरबार में उत्पन्न कलह ने अंग्रेजों को वांछित अवसर प्रदान कर दिया । अंग्रेज प्रतिनिधि जेनकिस ने अप्पा साहब का पक्ष लेकर नागपुर राज्य में बिटिश प्रभाव के विस्तार को संभव बनाया ।
रघुजी द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र परसोजी भोंसला नागपुर राज्य के नये शासक बने जो शारीरिक व मानसिक दोनों ही दृष्टि से निर्बल थे । शासन संचालन हेतु उन्होंने अपने काका अप्पा साहब को एजेन्ट नियुक्त किया । इस पद पर अप्पा साहब की नियुक्ति भावी घटनाओं के संबंध में नागपुर राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना कही जा सकती है । अप्पा साहब महत्वाकांक्षी व स्वार्थी व्यक्ति थे । अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु स्थिति का पूर्ण लाभ उठाया । तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग ने भोंसला राज्य में ब्रिटिश राज्य के विस्तार हेतु अप्पा साहब का साथ देने का निश्चय किया । अप्पा साहब भी अपने व्यक्तिगत आकाक्षा की पूर्ति हेतु राष्ट्रहित को बलि देते हुये, अंग्रेजी सहयोग लेने के लिये तत्पर हुये । फलस्वरूप 27 मई, 1816 को अंग्रेज व अप्पा साहब के बीच सहायक संधि हुई । अब भोंसला राज्य अपरोक्ष रूप से अंग्रेजी सिकंजे में जा चुका था और नागपुर राज्य में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो चुका था । तत्कालीन परिस्थितियों में कोई भी घटना ( देश की ) उतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी यह संधि । इससे अंग्रेजों को दक्षिण भारत से बुंदेलखंड तक अपनी सुदृढ़ रक्षा पंक्ति की स्थापना में सफलता मिली । संधि के अनुसार नागपुर राज्य में मराठा व्यय पर अंग्रेजी सेना को रखा जाना, अंग्रेजों के लिये अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हुआ । इससे मराठा शक्ति का विस्तार अवरूद्ध हो गया । दरबार के एक वर्ग ने इस संधि का विरोध किया था, किंतु अंग्रेजी सहयोग से अप्पा साहब ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी ।
इसी बीच 10 फरवरी, 1817 को भोंसला शासक परसो जी की अचानक रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई, तब यह संदेह किया गया कि अप्पा साहब ने उनको जहर देकर मरवा डाला, किंतु अंग्रेज रेसीडेंट ने इसे अफवाह मात्र की संज्ञा देकर टाल दिया, जो निश्चित ही एक षड्यंत्र था । परसोजी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कासीबाई सती हुई एवं अप्पा साहब के राज्यारोहण का रास्ता साफ हो गया ।
21 अप्रैल, 1817 को अप्पा साहब का राज्यारोहण हुआ, किंतु अपनी चिर - प्रतीक्षित अभिलाषा की पूर्ति होते है अप्पा साहब ने अंग्रेजों के प्रति अपनी नीति में परिवर्तन आरंभ कर दिया । स्पष्टतः ऐसा कर अप्पा साहब ने आत्मघात संघर्ष को आमंत्रित किया क्योंकि अब काफी देर हो चुकी थी । अप्पा साहब ने पहले ही ( शासक बनने के पूर्व संधि कर नागपुर राज्य की स्वतंत्रता को अंग्रेजों के हाथों गिरवी रख दिया था । अंग्रेजों की इच्छा के विरुद्ध अप्प साहब ने बाजीराव द्वितीय ( पेशवा ) से अपना संबंध स्थापित किया जो पूर्व से ही अंग्रेज विरोधी कार्यों में संलग्न रहत था । अंग्रेजों के विरुद्ध मराठा संघ की स्थापना में अप्पा साहब सम्मिलित थे । उसने 14 नवंबर, सन् 1817 को पेशव से ' सेनासाहब ' का खिताब प्राप्त किया, जिससे अंग्रेज चौकन्ने हो गये । उन्होंने अप्पा साहब के कार्यों को अनुचित व संधि के विपरीत मानकर अपना विरोध प्रकट किया । इस समय संपूर्ण देश में अंग्रेज विरोधी भावना प्रकट होने लगे थी जिसके जनक पेशवा बाजीराव द्वितीय थे । मराठों ने अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति से सचेत हो एकजुट होना आरंभ कर दिया जिसका नेतृत्व पेशवा कर रहे थे । इसी बीच पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह क दिया व तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध आरंभ हो गया । मराठा प्रतिशोध के साथ अपमानजनक संधि से मुक्ति पाना चाहत - हो. इस अवसर का लाभ लेने के लिये अप्पा साहब ने भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिया । संगठित प्रयास के अभाव व दुर्बल रणनीति के कारण ' सीताबल्डी ' के युद्ध में अप्पा साहब पराजित हुये व 27 नवंबर, 1817 को रात्रि दो बजे अप्पा साहब के सैनिकों ने नागपुर खाली कर दिया । इस अवसर पर रेसीडेन्ट जेनकिन्स ने कहा, " अब हम नागपुर राज्य के स्वामी बने हैं । जेनकिन्स ने अपनी इच्छानुसार अप्पा साहब पर नई शर्ते लाद दी, व अप्पा साहब को पुनः गद्दी पर बिठाया गया ( दिसंबर 1817 ), किंतु तत्काल ही अप्पा साहब को हटा कर गवर्नर जनरल के आदेशानुसार 2 जनवरी, 1818 ई . को रघुजी द्वितीय के नाती अल्पवयस्क रघुजी तृतीय को गद्दी में बिठाने का निश्चय किया गया, किंतु जेनकिन्स ने अप्पा साहब से अंतरिम समझौता कर सत्ता अप्पासाहब के हाथ में तब तक रहने दिया जब तक इसकी स्वीकृति गवर्नर जनरल से न मिल जाये ।
अप्पा साहब का विद्रोह व छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा वायसराय का अंत - अपमानित अप्पा साहब अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने का निश्चय कर राज्य के गोंड राजाओं को उकसाना आरंभ किया । अंग्रेज विरोधी कार्य व बाजीराव द्वितीय पेशवा के साथ मिलकर षडयंत्र आदि ऐसे कारण थे जिससे अंग्रेजों ने 17 मार्च 1818 को अप्पा साहब को कैद कर लिया और इलाहाबाद के लिये रवाना किया, किंतु मार्ग में जबलपुर के समीप अप्पा साहब महादेव पर्वत की ओर भाग निकले एवं गोंड राजा के यहां शरण ली । कुछ समय पश्चात् वे असीरगढ़ होते हुये लाहौर पहुंचे । अंग्रेज इनका पीछा करते रहे व अंत में 1840 ई . में भौतिक आपाधापी के मध्य अप्पा साहब की मृत्यु हो गयी ।
छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण (जून 1818 से जून 1830 ई.)
अप्पा साहब के पतन एवं पलायन के पश्चात् 26 जून, 1818 को रघुजी तृतीय को नागपुर राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया, किंतु बदली स्थिति में नर्मदा के उत्तर में स्थित मराठा राज्य में आने वाली समस्त भूमि अंग्रेजों के अधिकार में जा चुकी थी ( 6 जनवरी, 1818 को अप्पा साहब से हुये समझौते के अनुसार ) । रघुजी तृतीय अल्पवयस्क था एवं राज्य में अशांति और अराजकता का वातावरण व्याप्त था । दरबार में ईमानदार व्यक्ति की कमी थी अतः सत्ता के स्थायित्व की दृष्टि से राज्य की गतिविधियों पर नियंत्रण आवश्यक था । भोंसला शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार व अन्य दोषों को दूर करना भी जनहित में आवश्यक था, अतः रेसीडेण्ट जेनकिन्स ने प्रशासन में एक सीमित अवधि के लिए ब्रिटिश हस्तक्षेप आवश्यक समझा । यद्यपि गवर्नर जनरल हेस्टिंग, जेनकिन्स की इस नीति से सहमत न थे । अतः रघुजी तृतीय के वयस्क होने तक हस्तक्षेप और नियंत्रण द्वारा अंग्रेजों ने मराठा राज्य में ब्रिटिश रीति - नीति का प्रचार करना अपने हित में समझा । इस प्रकार राजा की अल्पवयस्कता की आड़ में अंग्रेजों ने शासन पर नियंत्रण स्थापित कर लिया ।
जेनकिन्स की घोषणा और छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण -31 मई, 1818 को रेजीडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु ब्रिटिश नीति की घोषणा की, जिसके अनुसार उन्हें रघुजी तृतीय के वयस्क होने तक नागपुर राज्य का शासन अपने हाथ में रखना था । इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का शासन भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया । नवीन योजनानुसार छत्तीसगढ़ में भोंसला राजा के एजेंट के रूप में ब्रिटिश अधीक्षक नियुक्त किये गये । इस तरह प्रथम बार छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन का सूत्रपात हुआ । इसकी अवधि जून, 1818 से जून, 1830 तक थी । प्रशासनिक कार्यों के संचालन हेतु भोंसला दरबार में नियुक्त ब्रिटिश प्रतिनिधि ( रेसीडेंट ) द्वारा अधीक्षकों को स्पष्ट आदेश प्राप्त होते थे । मि . जेनकिन्स ब्रिटिश रेसीडेंट के रूप में नागपुर में लबी अवधि वाली नवीन व्यवस्था के वे सूत्र धार थे ।
छत्तीसगढ़ के प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक कैप्टन एडमण्ड - कैप्टन एडमण्ड ब्रिटिश नियंत्रण काल में छत्तीसगढ़ के प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक नियुक्त किये गये परन्तु इन्होंने कुल मिलाकर यहां कुछ माह ही शासन किया । इस दौरान इनकी संपूर्ण शक्ति छत्तीसगढ़ में शांति एवं व्यवस्था स्थापित करने में लगी रही । इनके शासन काल की प्रमुख घटना अप्पा साहब की प्रेरणा से डोंगरगढ़ के जमींदार द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह था जिस पर नियंत्रण पा लिया गया । इस घटना के कुछ दिनों पश्चात् ही एडमण्ड की मृत्यु हो गयी ।
ब्रिटिश अधीक्षक मि. एगन्यू (1818-1825 ई.) - कैप्टन एडमण्ड के बाद मि. एगन्यू छत्तीसगढ़ के अधीक्षक नियुक्त किये गये । छत्तीसगढ़ के इतिहास में इनके कार्य विशेष महत्व रखते हैं । मि. एगन्यू एक योग्य कुशल व अनुभवी अधिकारी थे । उन्होंने रेसीडेण्ट के आदेशानुसार प्रचलित व्यवस्था में कोई मूलभूत परिवर्तन न करते हुए प्रशासन को भ्रष्टाचार रहित व चुस्त - दुरुस्त बनाने का प्रयास किया । एगन्यू द्वारा किये कार्य अग्रनुसार हैं
छत्तीसगढ़ की राजधानी परिवर्तन - छत्तीसगढ़ के शासन का दायित्व ग्रहण करने के बाद एगन्यू का प्रथम महत्वपूर्ण कार्य था - छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर से हटाकर रायपुर को बनाया जाना । रतनपुर 11 वीं शताब्दी से हैहय् राज्य की राजधानी रही थी, किंतु बिंबाजी के पश्चात् ( 1787 ई. ) रतनपुर का प्राचीन गौरव विलुप्त होने लगा था । प्रशासनिक सुविधाओं की दृष्टि से एगन्यू ने राजधानी के लिये आवश्यक सुविधाओं से युक्त रायपुर को राज धानी बनाने का निश्चय किया । यह स्थान छत्तीसगढ़ में केन्द्र में होने के साथ - साथ तत्कालीन समय में महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र भी था । 15 वीं शताब्दी के आरंभ में बसा यह नगर कलचुरियों की रायपुर शाखा का केन्द्र था । एगन्यू का यह कदम अत्यंत विवेकपूर्ण था । आज के रायपुर का विकसित स्वरूप इस शासक के उक्त कदम की सार्थकता को पुष्ट करता है । इस प्रकार रायपुर ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय एवं छत्तीसगढ़ की राजधानी बना । रायपुर को राजधानी के गौरव के अनुसार विकसित करने में एगन्यू ने व्यक्तिगत रूचि प्रदर्शित की । एगन्यू की प्रेरणा से ही आज इस नगर को छत्तीसगढ़ की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ, जिसकी कल्पना उन्होंने आज से लगभग दो शताब्दी पूर्व कर ली थी ।
प्रशासनिक ढांचे का पुनर्गठन - राजधानी परिवर्तन के बाद मि. एगन्यू का दूसरा बड़ा कार्य छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक ढांचे में नवीन परिवर्तन करना था । इनके आगमन के पूर्व छत्तीसगढ़ में 27 परगने थे । इनको पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8 परगनों में सीमित कर दिया गया । शासन की सुविधा की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण योजना प्रमाणित हुई । इन परगनों में 8 कमांविसदार परगनाधिकारी के रूप में नियुक्त किये गये । ये अधीक्षक की देख - रेख में कार्य करते थे परन्तु अपने - अपने परगनों के संदर्भ में इन पर शासन का पूरा उत्तरदायित्व था । ये परगने क्रमशः रायपुर, रतनपुर, राजरो, धमतरी, दुर्ग, धमधा, नवागढ़ एवं खरौद थे । कुछ समय बाद बालोद परगना भी निर्मित किया गया । अतः 1820 ई . तक परगनों की संख्या 9 हो गई थी । इनका विवरण रेसीडेन्ट जेनकिन्स ने अपनी रिपोर्ट में दिया है । एगन्यू ने परगनों को पुनर्गठित कर शासन के लिये पूर्व की अपेक्षा अधिक सरल और कम खर्चीली इकाई बनाया । यह पुनर्गठन 1819-20 ई . में किया गया । इनके आकार बड़े - छोटे थे । सबसे बड़ा परगना रायपुर ' और सबसे छोटा राजरो ' था । प्रशासनिक इकाई के रूप में ये परगने काफी समय तक बने रहे ।
एगन्यू के अन्य सुधार - एगन्यू ने सरकारी अभिलेखों को सुरक्षित रखने के लिये नए सिरे से उचित व्यवस्था की और मुद्रा विनिमय के क्षेत्र में विद्यमान विषमताओं को दूर कर उनमें एकरूपता लाने का प्रयत्न किया । उत्पादन में वृद्धि तथा व्यापार एवं परिवहन आदि के क्षेत्र में भी अनेक सुधार किये । अवांछित करों, जो व्यापार में बाधक थे, को समाप्त कर दिया गया । परिणामस्वरूप वस्तुओं के आयात - निर्यात में वृद्धि हुई व उनकी बेहतर कीमत प्राप्त होने लगी, जिससे उत्पादन को प्रोत्साहन मिला एवं कृषक की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ ।
अपने अन्य कार्यों में एगन्यू ने धमधा के बनावटी गोंड राजा के विद्रोह को शांत किया और सोनाखान के जमींदार को व्यवस्था के काल में उसके द्वारा हड़पी गई खालसा भूमि को वापस करने के लिये बाध्य किया । सैनिक कार्य के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के लिये 3000 घोड़े निर्धारित किये गये एवं यहां के लिये अंतरिम अनियमित सेना का भी गठन किया गया, जिसका दायित्व रेसीडेन्ट के सैनिक सहायक पर था ।
एगन्यू अपने काल में बस्तर एवं जैपुर जमींदारी के मध्य कोटपाड़ परगने संबंधी विवाद को सुलझाने में भी सफल रहा । तत्कालीन बस्तर के राजा महिपालदेव ने धमतरी में एगन्यू से मुलाकात कर कोटपाड़ की प्राप्ति हेतु निवेदन किया था । महिपालदेव के निवेदन पर एगन्यू ने ब्रिटिश रेसीडेंट से हस्तक्षेप का आग्रह कर मामले को सुलझाया ।
नये रेसीडेंट विल्डर - मि. जेनकिन्स ब्रिटिश रेसीडेंट के पद पर 1827 ई. तक रहे । 12 अप्रैल, 1827 को मि. विल्डर जेनकिन्स के उत्तराधिकारी के रूप में आये । उनके कार्यकाल में सन् 1829 ई. को अंग्रेज और भोंसला शासक के बीच में एक नवीन संधि हुई, जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ का शासन पुनः मराठों को सौंपा जाना था ।
एंगन्यू का त्यागपत्र -1818 से 1825 तक छत्तीसगढ़ को अपनी सेवायें देने के पश्चात् इन्होंने त्यागपत्र दे दिया । अपने त्यागपत्र के साथ इन्होंने ब्रिटिश शासन की प्रशासनिक दृढ़ता हेतु छत्तीसगढ़ में सैनिक व असैनिक अधिकार एक ही व्यक्ति में केंद्रित करने की अनुशंसा की, जिसे मान लिया गया ।
अधीक्षक कैप्टन हंटर - एगन्यू के उत्तराधिकारी के रूप में कैप्टन हंटर का आगमन हुआ । वे अधीक्षक पद पर कुछ माह ही रह सके । अतः उनके सम्बन्ध में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती ।
अधीक्षक मि. सेन्डीस (1825-28 ई.) - सेन्डीस छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बनने के पूर्व नागपुर घुड़सवार सेना के सैनिक अधिकारी थे । एगन्यू के परामर्श के अनुसार इन्हें छत्तीसगढ़ के सैनिक व असैनिक दोनों अधिकार सौंपे गये मि. सेन्डीस के शासन की एक महत्वपूर्ण घटना सन् 1826 ई . की सन्धि थी, जो अंग्रेजों और रघुजी तृतीय के बीच वयस्क होने के बाद सम्पन्न हुई । इस संधि के अनुसार अंग्रेजों और रघुजी तृतीय के बीच संबंधों की स्थापना हुई, जिसके अनुसार नागपुर जिले का शासन प्रयोग के रूप में रघुजी तृतीय के अधिकार में रखा गया । इस संधि से छत्तीसगढ़ का शासन अप्रभावित रहा और यहां अंग्रेजों का नियंत्रण पूर्ववत जारी रहा । मि . सेन्डीस का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य था यहां अंग्रेजी वर्ष को जारी करना । इस वर्ष ने इस क्षेत्र में अब तक प्रचलित हिन्दू और मुस्लिम वर्षों का स्थान लिया । इसके अतिरिक्त पहली बार अंग्रेजी भाषा को सरकारी कामकाज का माध्यम बनाया गया । इसके पहले तक उसका माध्यम स्थानीय भाषायें थीं । छत्तीसगढ़ में डाक - तार के विकास का कार्य भी इन्हीं के शासन काल में किया गया ।
सेन्डीस के उत्तराधिकारी और ब्रिटिश नियंत्रण की समाप्ति - सेन्डीस के बाद विलकिंसन और क्राफर्ड ब्रिटिश अधीक्षक बनाकर भेजे गये । इनका कार्यकाल सन् 1828 से जून 1830 तक था । विलकिसन के कार्यकाल का कोई उल्लेखनीय महत्व नहीं है । क्राफर्ड के काल में नागपुर में ब्रिटिश रेसीडेंट विल्डर और भोंसला शासक के बीच 27 दिसंबर, 1829 ई. में हुई । नवीन संधि के अनुसार छत्तीसगढ़ का शासन पुनः भोंसलों को सौंपा जाना था । सत्ता का यह हस्तांतरण 6 जून, 1830 को संपन्न हुआ, जिसमें अधीक्षक क्राफर्ड ने भोंसला अधिकारी कृष्णाराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंप दिया । इस तरह बारह वर्षों के नियंत्रण के पश्चात् एक बार पुनः छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त होकर मराठों के अधीन चला गया और अल्पकालीन किंतु महत्वपूर्ण ब्रिटिश शासन का अंत हो गया । इस दौरान अंग्रेजों ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये । पूर्व प्रचलित शासन की कमियों को दूर किया और प्रशासन को व्यवस्थित करने का प्रयास किया ।
ब्रिटिश शासन की समीक्षा - छत्तीसगढ़ में बारह वर्षीय ब्रिटिश नियंत्रण के कारण छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक गतिशील विकास परिलक्षित हुआ । इस अवधि में यहां के शासन में व्यवस्था, नियम और शांति का सूत्रपात हुआ इसके पूर्व शासन में इन बातों के लिये कोई स्थान न था । मि . एगन्यू ने शासन में विद्यमान दोषों को दूर कर उसे व्यवस्थित, वैज्ञानिक एवं गतिशील बनाया । परंपरागत पंचायती न्याय व्यवस्था को उसके दोषों को दूर कर कायम रहने दिया गया । न्यायाधिकारियों के पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण की नई प्रणाली आरंभ की गयी । पुलिस व्यवस्था को प्रभावी बनाया गया । अधीक्षक की अधीनता में गांव के गौंटिया या पटेल को शांति व्यवस्था का दायित्व सौंपा गया । छत्तीसगढ़ को चोरों, डाकुओं और लुटेरों के आतंक से मुक्त करने के उद्देश्य से रायपुर और बिलासपुर में सैनिक टुकडियां रखी गयीं । छत्तीसगढ़ में विकास के नवीन मार्ग खोलने में अधीक्षक एगन्यू का नाम उल्लेखनीय है । अंग्रेजों ने यहां व्यापार के लिये अच्छी पृष्ठभूमि तैयार करने का प्रयत्न किया । यातायात के साधनों का विस्तार किया और कृषकों को उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया, किंतु जनकल्याण की भावना के साथ अंग्रेजी शासन के मूल में साम्राज्यवादी प्रवृत्ति हावी रही । लगान वसूली के समय अंग्रेज अपनी साम्राज्यवादी प्रवृति का पूर्ण परिचय देते थे । व्यापार के क्षेत्र में वस्तुओं के क्रय - विक्रय हेतु गुमास्ते भेजे जाते थे, जो एक गांव के किसी भी व्यक्ति को अंग्रेजी सामान खरीदने और देशी सामान बेचने के लिये बाध्य करते थे । यदि ऐसा करने में कोई आपत्ति करता तो उसे दण्ड का भागी होना पड़ता था । सभी नीतियों को क्रियान्वित करते समय कंपनी की आर्थिक स्थिति का पूर्ण ध्यान रखा जाता था । अंग्रेज अपने नियंत्रण काल में इस क्षेत्र में भावी ब्रिटिश शासन की पृष्ठभूमि तैयार करना चाहते थे जो उन्होंने बखूबी किया । वस्तुतः अंग्रेज अपने किसी भी कार्य में साम्राज्यवादी - औपनिवेशिक नीति की सीमा से ऊपर जाना नहीं चाहते थे । फिर भी अल्पकालीन अंग्रेजी शासन में जनता ने शांति और सुव्यवस्था का अनुभव किया । इस काल में छत्तीसगढ़ के शासन में एक गतिशील परिवर्तन अवश्य आया । यहां की जनता में प्रशासन के प्रति विश्वास की भावना जागृत हुई ।