रायपुर में वानर सेना का बाल आंदोलन : बालक बलीराम 'आजाद' का शौर्य
आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका के निर्वहन मे जिले में गठित 'वानर सेना का विशेष योगदान था। यह छोटे बच्चों का संगठन था, जिसके सैनिक प्रमुख रूप से स्कूली बच्चे थे और रायपुर नगर में इस सेना का प्रमुख केन्द्र था- ब्राह्मण पारा। इस वानर सेना के संस्थापक थे- बलीराम दुबे आजाद जिनकी उम्र उस समय मात्र चौदह वर्ष की थी। यति-यतनलाल जैन इस सेना के सचालक थे। इस सेना का प्रमुख कार्य था -पोस्टर एवं पर्यों का वितरण जो आदोलन की गतिविधियों से संबंधित होते थे। अग्रणी नेताओ के संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना, एकत्रित होकर शहर भ्रमण करना, छोटी सभाये करना आदि। नित्यप्रति इन सैनिकों को एक निश्चित स्थान पर अपने निर्देशक से निर्देश मिलते थे, तद्नुसार वे अपनी गतिविधियां जारी रखते थे। इन बच्चों की गतिविधिया इतनी प्रभावी थीं कि पुलिस ने बर्बरता पूर्वक इसे कुचलना आरंभ कर दिया। पुलिस इन बाल सैनिकों को पुलिस वाहन में भर कर नगर से बाहर तीन-चार मील दूर छोड़ आते थे, जहा से पैदल आते-आते शाम हो जाती थी अतः शहर में दिन भर इनके क्रियाकलाप न हो पाते थे। पुलिस का प्रतिदिन का यही कार्य था. सुबह बच्चों को पकड़ कर शहर से बाहर छोड़ आना. किंतु इससे इनकी गतिविधियां और बढ़ती गई अतः पुलिस ने अपनी बर्बरता का परिचय देते हुए इन्हें बेतों से पीटना आरंभ कर दिया।
28 अगस्त, 1932 को रक्षाबंधन के दिन पुलिस ने बर्बरता की पराकाष्ठा लांघते हुए संपूर्ण शहर में लाठीचालन व गिरफ्तारियां की, बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। इन बाल सैनिकों को पीटकर घायल किया गया। बलीराम दुबे 'आजाद एवं रामाधर नाई नामक एक विद्यार्थी को आज ही के दिन पकड़कर नौ माह की सजा देकर जेल भेज दिया गया। इसके पूर्व भी बलीराम आजाद को 13 मार्च, 1932 को ब्राह्मणपारा में भाषण देते हुए पुलिस ने बेतों से पीटा था, किंतु बालक अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए बेतो की मार सहता रहा, पर अपना भाषण जारी रखा। यह बालक वानर सेना का नेता था एवं लोग उसे प्रेम और गर्व से 'आजाद कहा करते थे। संभवतः ब्राह्मण पारा के समीप 'आजाद चौक का नामकरण इसी बालक के उपनाम 'आजाद पर ही पड़ा। वानर सेना की गतिविधियों से पं. रविशंकर के ज्येष्ठ पुत्र भगवतीचरण शुक्ल भी सलग्न थे। रायपुर जिला गजेटियर से जानकारी मिलती है कि आंदोलन के दौरान जलियाँवाला बाग हत्याकांड से संबंधित कुछ लिखित सामग्री वितरित करने से रोकने हेतु व
इनसे ये सामग्री प्राप्त करने के लिए पुलिस ने इन्हें बर्बरतापूर्वक पीटा था।
खादी दमन बनाम पुलिस बर्बरता - आंदोलन को कुचलने हेतु शासन ने सभी प्रकार की दमनात्मक कार्यवाहियां जारी की। सत्याग्रहियों के साथ जनता को भी इस दमन का भागी बनना पड़ा। इस दौरान रायपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पुलिस को सख्त निर्देश दिये कि खादीधारियों को न छोड़ा जाए, ढूंढ कर पीटा जाए और गिरफ्तार कर लिया
जाए। आंदोलन हेतु नियुक्त डिटेक्टरों में से एक माधव प्रसाद परगनिहा को खादी पहनने के कारण निर्दयतापूर्वक पीटा गया। बलौदा-बाजार से कीकामाई की दुकान पर धरना देने आ रहे बिसाहु तेली को भी खद्दर पहनने के कारण मारकर दस दिनों तक कोतवाली में रखा गया। उसे खादी वस्त्र उतारने हेतु दबाव डाला गया एवं उसके इंकार करने पर पीट कर उसके दांत तोड़ दिये गये। उसे यातनाएं दी गईं और लिखित क्षमा न मांगने पर जेल भेज दिया गया। इसी समय महासमुंद तहसील के पचेरा गांव में 12 जनवरी, 1932 को क्रांति कुमार भारतीय को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें खादी पहने रहने की जिद पर बेतों से मारा गया। जेल की इस घटना के विरोध मेंरामानन्द दुबे ने घोषणा की कि देशभक्त क्रांति कुमार पर हुए जुत्म का बदला लिया जाएगा। इस पर उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया।
धमतरी में आंदोलन- धमतरी में भी रायपुर की भांति विदेशी वस्तुओं की दुकानों पर धरना दिया गया। धमतरी तहसील पूर्व से ही आंदोलन में सक्रिय रहा है। रूद्री-नवागाव के जंगल सत्याग्रह ने यहां आंदोलन को और तीव्रतम बना दिया था। धमतरी एवं आस-पास के क्षेत्रो में पुलिस ने सत्याग्रहियों पर उसी तरह से अत्याचार किया। लगभग 45 सत्याग्रहियों को अर्थदण्ड एवं कारावास की सजा दी गई। धमतरी के शीर्षस्थ नेता रायपुर में आंदोलन करते हुए पूर्व में गिरफ्तार हो चुके थे।
बिलासपुर में आंदोलन- यहां छेदीलाल वैरिस्टर के नेतृत्व में सदर बाजार में धरना दिया गया जिससे इन्हें गिरफ्तार कर 250 रुपये का अर्थदंड दिया गया। धरने के नाम पर ही अवधराम सोनी, पं. मुरलीधर मिश्र, कैलाशचंद्र श्रीवास्तव, कन्हैयालाल सोनी आदि को भी गिरफ्तार किया गया।
दुर्ग जिले में आंदोलन- नरसिंह प्रसाद अग्रवाल को 12 फरवरी, 1923 को उत्तेजना फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। 31 दिसंबर, 1932 को घनश्याम सिंह गुप्ता को तिरंगा फहराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल, घनश्यामसिंह गुप्ता और वाय.व्ही. तामस्कर के वकालत करने के अधिकार को शासन ने रद्द कर दिया।
इस प्रकार समस्त अंचल में अंग्रेजी शासन ने क्षेत्र में चल रहे जोरदार सविनय अवज्ञा को दमनात्मक तरीके से कुचलने का प्रयास किया, पर यह और भी बढ़ता गया। सत्याग्रहियों को जेल भेजा जाता रहा, पर बाहर इनकी संख्या बढ़ती रही। स्पष्टतः क्षेत्र की समस्त जनता आंदोलित हो उठी थी।