महासमुंद (तमोरा) में जंगल सत्याग्रह, 1930 : बालिका दयावती का शौर्य
प्रातीय काग्रेस कमेटी के निर्णय अनुसार सितम्बर 1930 को महासमुंद में जगल सत्याग्रह आरभ करने की योजना बनाई गई। इसके अनुसार शंकरराव गढ़ेवाल और यतियतन लाल जैन के नेतृत्व में तहसीत में सत्याग्रह आरभ हुआ। 9 सितबर, 1930 को दोनों नेता गिरफ्तार कर लिए गए। इसी क्रम में सत्याग्राहियों के एक जत्थे ने भगवती प्रसाद मिश्रा के नेतृत्व में महारामुद के तमोरा नामक गांव से जगल की ओर प्रस्थान किया। वन विभाग के रेंजर द्वारा दी गई चेतावनी की उपेक्षा करते हुए भीड जंगल कानून के उत्तघन हेतु आग बढी अत पुलिस ने वहा पहुचकर व्यापक गिरफ्तारियां की। आदोलन चलता रहा और प्रतिदिन घास काटकर जगत कानून भग किया जाता था। तमोरा ग्राम के आस-पास धारा 144 लागू कर दी गई एक दिन दस हजार लोगों की भीड़ एकत्रित हुई जिसमें जगत प्रवेश को रोकने के लिए बंदूक धारी तैनात किये गए। प्रतिदिन की तरह एक दिन सत्याग्रहियों का जत्था, जिराका नेतृत्व किशोर बालिका दयावती कर रही थी. आरक्षित वन की ओर अग्रसर हुआ कितु उरो तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी एन पी. दुबे ने प्रवेश से रोका, इस पर वीर बालिका ने उसे तनाचा मार दिया। इससे वातावरण में सन्नाटा छा गया। इस घटना को आधार बनाकर वहां गोली चालन किया जा सकता था. किंतु वहा उपस्थित मालगुजार ने स्थिति को कुशलतापूर्वक संभाल लिया।
तहसील में अन्य घटनाएं- तहसील में आदोलन दिनों दिन उग्र होने लगा था। इसी बीच सत्तिहा नामक गाव में पुलिस ने सभा कर रहे मातगुजार अंजोर सिंह ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया जिससे लोगों ने उत्तेजित होकर कुछ सिपाहियों को घायल कर दिया। पुलिस ने प्रतिकार पूर्ण आक्रमण कर लोगों को पीटा और लोग भी पुलिस पर टूट पडे। इसमें चौवालीस व्यक्ति गिरफ्तार किये गए। अब आदोलन क्षेत्र के अनेक गावा में फैल गया। इसमें बच्चे महिलाओं और छात्राओं ने भरपूर सहयोग दिया। पुलिस बर्बरता से जनमानस में भाकोरा था। इसी दौरान राजिम आरग और तानवट-नवापारा में भी जनता व पुलिस के मध्य टकराव हुआ। गरियाबद में भी हजारों लोग जगल सत्याग्रह हेतु संगठित हुए। यहा भी जनता ने पुलिस अधीक्षक समेत दल पर पथराव किया फलत यहा गाली पालन किया गया। तानवट-नवापारा में दशहरे के मौके पर एकत्रित लोगों को पुलिस अचानक पीटने लगी। यह कार्य तानवट नवापारा के जमीदार के इशारे पर किया गया। इससे भीड़ ने पुलिस की जमकर पिटाई की, महिला ने भी पुरुषों का साथ दिया। इस पर पुलिस भाग कर पटरपायली गाव में शरण ली। प्रकरण में अनेक लाग गिरफ्तार किए गए। तहसील में लोग शराब की दुकानों पर धरना देते। चोक खेड़ी में सभा हेतु एकत्रित जनता पर पुलिस ने लाठी चालन किया। पिथौरा में सत्याग्रही बुढानशाह को पुलिस ने पीटा और गिरफ्तार किया। कौडिया ग्राम में पुलिस ने लक्ष्मीनारायण तेली नामक व्यक्ति की पिटाई की जिसरा कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। इस तरह आदोलन तब तक चलता रहा जब तक राष्ट्रीय स्तर पर सविनय अवज्ञा स्थगित नहीं कर दिया गया।
लमरा ग्राम जंगल सत्याग्रह. 1930- यहा सितबर 1930 को अरिमर्दन गिरि के नेतृत्व में गोड आदिवासियों नेजगल सत्याग्रह आरभ किया. जो आठ तारीख को आरभ होकर पाच दिनों तक गलता रहा। इसमें आरा-पारा के ग्रामीणो सहित कुल 6-7 हजार आदिवासी सत्याग्रहियों ने भाग लिया। इस सत्याग्रह में गाड जनजाति की प्रमुखता थी। प्रमुख सत्याग्रहिया में आनद गाड, श्यामलाल गाड. फिरतुराम गाड एव नगलू गोड प्रमुख थे।
मोहबना-पोंड़ी में जंगल सत्याग्रह. 1930- दुर्ग जिले के माहबना और पाडी गावो में आदिवासी गारान के विरोध में आदोलित हो उठे। 24 जुलाई. 1930 को मोहबना के आदिवासी ग्रामीणों ने अपने मवेशिया का रक्षित वन में चरन छोड़ दिया। वन विभाग के अधिकारिया ने 414 मवेशियों को पकड कर काजी हाउस बद कर दिया। इस पर पोड़ी गाव में नरसिह प्रसाद अग्रवाल के नेतृत्व में 3 अगस्त, 1930 को एक राभा आयोजित की गई जिसम उन्हाने जगल कानून के उल्लघन की अपील की। जनता ने रक्षित वन में प्रवेश कर धारा काटी। नरसिंह प्रसाद अग्रवाल को जनता को उकसाने के आरोप मे अनेक आदिवासियो के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।
पोड़ी ग्राम जंगल सत्याग्रह, 1930- बिलासपुर जिले में स्थित सीपत के समीप पाडी गाव मे आदिवासिया न रामाधार दुवे के नेतृत्व मे 1 जुलाई. 1930 को जगल सत्याग्रह किया गया। रामाधार दुर्य को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे 28 अक्टूबर 1930 को छ माह की सजा दी गई।
बांधाखार जंगल सत्याग्रह. 1930- वर्तमान कोरवा जिले के कटघोरा तहसील : दाधारखार जमीदारी रिचत थी। यहा का गोड जमीदार अग्रेजो का समर्थक था। उसने जगल के निस्तार व उपयोग पर कडा प्रतिबंध लगा रखा था। इस पर मनोहर लाल शुक्ल के नेतृत्व में यहां के गोड़ व कंवर आदिवासियों ने जगल मे अपने परम्परागत अधिकार के लिये जगल सत्याग्रह किया। सत्याग्रह की व्यापकता से भयभीत होकर जमीदार ने पुनः निस्तार के अधिकार बहाल कर दिये। अन्य प्रमुख सत्याग्रहियों में हेमसिह और इतवारसिंह गोड थे।
सारंगढ़ में जंगल सत्याग्रह, 1930- वर्तमान रायगढ़ जिले के सारंगढ रियासत में 1930 में अन्य क्षेत्रों की तरह सत्याग्रह कर जंगल कानून का उल्लघन किया गया जिसमें सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे धनीराम, जगतराम, कुंवरभान को गिरफ्तार किया गया था।
उदयपुर में बेगार विरोधी आंदोलन- वर्तमान रायगढ़ जिले के उदयपुर (धरमजयगढ तहसील मुख्यालय) में सविनय अवज्ञा आदोलन के समय बेगार विरोधी आदोलन चलाया गया। यहां गांव में आदिवासियों को पकड़ कर रियासत प्रशासन के अधिकारियों द्वारा बेगार कराया जाता था जबकि लोग बेगार करना पसंद नहीं करते थे। अतः
वे बेगार से बचने के लिये गांव छोडकर जंगलों में चले जाते थे। ग्राम बंगरसुता में बहनटागा नामक एक पहाड़ी है जहां पर 'बहना (धान कूटने हेतु गड्ढे) बने हुये है। लोग बेगार से बचने के लिये यहां आते थे और बहनो से धान कूटकर चावल तैयार कर भोजन करते थे। यह आंदोलन स्थानीय था अत. व्यापक न हो सका। साथ ही उचित नेतृत्व एवं सीधे विरोध के अभाव में यह उतना प्रभावी न हो सका, किंतु फिर भी यह विरोध शोषण के विरुद्ध यहां के लोगों की राजनैतिक चेतना को दर्शाता है।
बिलासपुर जिले में पकरिया के जंगली क्षेत्र में भी सत्याग्रह किया गया। इसी प्रकार बिलासपुर रेलवे स्टेशन के समीप इदारवार जंगल में जंगल सत्याग्रह स्थानीय सत्याग्रहियों द्वारा किया गया।