रायपुर षड्यंत्र केस
उस समय छत्तीसगढ़ अंचल में जागृति की एक लहर ने युवकों को चंद्रशेखर आजाद, वीर सावरकर के पद चिन्हों में चलने के लिए प्रेरित किया, फलतः अंचल ने क्रांतिकारी आदोलन की ओर कदम बढ़ाए। रायपुर के अवधियापारा निवासी श्री परसराम सोनी, जो 'रायपुर कास्पिरेसी केस के नायक थे, ने गिरीलाल लोहार से पिस्तौल, रिवाल्वर निर्मित करने एवं चलाने की कला प्राप्त की। वे बम विस्फोट सामग्री, कारतूस, देशी बंदूक एवं अन्य विस्फोटक सामग्री निर्मित करना चाहते थे, किंतु आर्थिक अभाव के कारण प्रारंभ में इन समस्त कार्यों के संचालन में कठिनाई हुई। उन्हें बंगाल-नागपुर रेलवे के ट्राली निर्माता श्री अमृतलाल से औजार, लोहे के सामान एवं तकनीकी सहायता, सी.पी. मेडिकल स्टोर्स के सहायक सेल्स मेन श्री होरीलाल से जरूरी रसायन एसिड फास्फोरस एवं रायपुर के बड़े व्यापारियों व मिल कारखानों के प्रबंधकों से आर्थिक सहायता प्राप्त होती रही।
परसराम सोनी एवं उनके सहयोगियों द्वारा हथियारों के निर्माण एवं रखरखाव की व्यवस्था के लिये ईदगाहमाठा एवं रावनभाठा (रायपुर) क्षेत्र को चुना गया। एक बार अकस्मात ईदगाहमाठा में बम विस्फोट के कारण तत्कालीन राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल मि. पीयर्स द्वारा की गई रिपोर्ट के आधार पर पुलिस हरकत में आ गई। तब मालवीय रोड में उस समय स्थित 'ओरियंटल होटल के मालिक ने उन्हें इन खतरनाक कार्यों के लिये जगह प्रदान की। यह होटल इस समय संगठन का गुप्त कार्यालय बन गया था। श्री रणवीर सिंह शास्त्री, सुधीर मुखर्जी, दशरथ लाल दुबे.प्रेमचंद वासनिक, क्रांतिकुमार भारतीय, बिहारी चौबे इत्यादि प्रख्यात क्रातिकारी लोग इस संगठन से जुड़े हुए थे।
यद्यपि सतर्कता से सब कार्य लिये जाते थे। लेकिन पुलिस एवं गुप्तचर की तमान असफलताओं के बावजूद इन क्रांतिकारियों में एक छद्म क्रांतिकारी शिवनंदन पुलिस का मुखबिर था। 14 जुलाई, 1942 को निर्मित एक योजना के तहत दूसरे दिन परसराम रिवाल्वर एवं कारतूस लेने जाने वाले थे, शिवनंदन (मुखबिर) की सूचना पर 15 जुलाई, 1942 को परसराम सोनी अपनी भरी रिवाल्वर के साथ सदर बाजार एवं एडवर्ड रोड को जोडने वाली सड़क पर सुखनंदन के इशारे पर गिरफ्तार कर लिया। उसके पास से रिवाल्वर कारतूस एवं घर की तलाशी पर अनेक विध्वंसक विस्फोटक पदार्थ (पिकरिक एसिड एवं बैटरी पावडर), आपत्तिजनक सामग्री एवं षड्यंत्रकारी कागजात बरामद किये गये। इस जब्ती के आधार पर, गिरिलाल लोहार, डॉ. सूर. एवं मंगल मिस्त्री को गिरफ्तार कर उनके घरों की तलाशी ली गई। दूसरे दिन गिरफ्तार लोगों को जेल भेज दिया गया। श्री रणवीर सिंह शास्त्री को भी परसराम सोनी के साथ जेल में रखा गया।
इसके पश्चात् सुधीर मुखर्जी, भूपेद्रनाथ मुखर्जी, सुरेन्द्रनाथ दास, सीताराम शास्त्री, कृष्णाराम थिटे, क्रांतिकुमार भारतीय, दशरथलाल चौबे, कुंजबिहारी चौबे इत्यादि को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। श्री पी. भादुड़ी एडव्होकेट, बेनी प्रसाद तिवारी, अहमद अली. चंदोरकर, पेंढारकर, हर्षद अली, चुन्नीलाल अग्रवाल जैसे विख्यात अधिवत्ताओं ने अदालत में इन राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों की पैरवी की। 9 माह की लंबी प्रक्रिया के बाद 27 अप्रैल, 1943 को शस्त्र अधिनियम के तहत गिरफ्तारों में दस लोगों को निम्नलिखित सजाये दी गई -(1) गिरिलाल-8 वर्ष की
सख्त कैद (2) परसराम सोनी-7 वर्ष की सख्त कैद (3)
3) सुधीर मुखर्जी-2 वर्ष की सख्त कैद (4) क्रांतिकुमार भारतीय
-2 वर्ष की सख्त कैद एवं 6 अन्य को भी सजा हुई।
जिला एवं सत्र न्यायालय रायपुर के इस निर्णय के खिलाफ तत्कालीन नागपुर हाईकोर्ट में अपील की गई। यहां न्यायमूर्ति श्री नियोगी ने दस में से चार अभियुक्तों को छोड़ दिया। इस बीच सरदार भगत सिंह के अनन्यतम् मित्र जयदेव कपूर मई, 1946 में रायपुर आये। उनके अभिनंदन में गांधी चौक में एक आम सभा आयोजित हुई जिसमें थे।
जनता ने एक प्रस्ताव पारित कर परसराम सोनी एवं गिरिताल लोहार को मुक्त कर देने का आग्रह किया। इस प्रस्ताव के अनुरूप क्रांतिकुमार भारतीय एवं सुधीर मुखर्जी (दोनों हाईकोर्ट से छोड़े गये) जनता का पक्ष शासन के समक्ष रखने राजधानी नागपुर गये। मुख्यमत्री पं. शुक्ल ने तत्काल उनका आग्रह स्वीकार करते हुये इन राजबदियो को रिहा करने का आदेश दिया। तदनुसार 26 जून, 1948 को परसराम सोनी और गिरिलाल रिहा कर दिये गए।