छत्तीसगढ़ के प्रमुख इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता
छत्तीसगढ़ में क्रमबद्ध इतिहास लेखन के उदाहरण नहीं मिलते। सम्भवतः ऐसी परम्परा रही हो, किंतु क्षेत्र के क्रमबद्ध इतिहास को दर्शाने वाले ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान में जो भी इतिहास उपलब्ध है उसकी रचना प्राप्त शिलालेखों, जारी ताम्रपत्रों, सिक्कों व अन्य पुरातात्विक स्रोतों के साथ उत्तर कल्चुरि एवं मराठाकालीन कुछ ग्रंथों के युक्तियुक्त समन्वय के द्वारा की गई है। छत्तीसगढ़ से संबद्ध ज्ञात कुछ प्रमुख इतिहासकारों यथा बाबू रेवाराम, पं. शिवदत्त शास्त्री. केदारनाथ ठाकुर एवं इनके बाद की पीढ़ी के प्यारेलाल गुप्त, रायबहादुर हीरालाल, बालचंद्र जैन (दोनों पुरातत्ववेत्ता) तथा वर्तमान समय में मदनलाल गुप्त, लक्ष्मीशंकर निगम, हीरालाल शुक्ल, डॉ रमेन्द्र मिश्र, भगवान सिंह वर्मा, आदि प्रमुख हैं, इनमें से कुछ का परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है
छत्तीसगढ़ के आदि इतिहासकार महाकवि– बाबू रेवाराम-इनका जन्म प्यारेलाल गुप्त द्वारा निर्धारित सामान्यतः मान्य तिथि 1850 ई. में कायस्थकुल में हुआ था। इन्होंने प्रथम बार छत्तीसगढ़ का क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत किया वे हिन्दी, संस्कृत और बृजभाषा के विद्वान थे तथा इन्हें फारसी तथा मराठी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। वे छत्तीसगढ़ के उत्तर रीतिकालीन काव्य के प्रतिनिधि थे। कृष्णभक्ति से सम्बन्धित उनकी रचनाएं सूरदास की पदावलियों के समकक्ष हैं। इनके द्वारा रचित 13 कृतियों की जानकारी मिलती है, जिनमें संस्कृत में पांच-सार रामायण दीपिका', 'ब्राह्मण स्रोत', 'गीता माधव महाकाव्य', 'नर्मदाष्टक, गंगालहरी हैं। इनकी काव्य कृतियाँ- रामाश्वमेघ', 'विक्रम विलास', रत्नपरीक्षा', 'दोहावली' एवं 'माता के भजन' तथा गद्य कृतियाँ-लोकलावण्य वृत्तांत', रतनपुर का इतिहास' एवं 'तवारीख-ए-हैह्यवंशी राजाओं की' हैं। ‘सार रामायण दीपिका राम की लीलाओं का तथा गीतामाधव' महाकाव्य है, जिसमें कृष्ण लीला का सहज एवं सचित्र वर्णन है। नर्मदा अष्टक व गंगालहरी' दो पवित्र नदियों' गंगा व नर्मदा की स्तुतियाँ हैं। 'रामाश्वमेध' में भगवान् राम द्वारा कराये गये अश्वमेध यज्ञ का वर्णन है। इनकी अन्यकृति विक्रम विलास, सिंहासन बत्तीसी का पद्यानुवाद है। इन्होंने अपनी इस कृति में रतनपुर राज्य के लिये 'छत्तीसगढ अभिधा का प्रयोग किया है। रत्नप्रदीप या रत्नपरीक्षा में इन्होंने रत्नों के प्रकार, गुण-दोष आदि का वर्णन किया है। दोहावली नीतिगत दोहों का संग्रह है तथा माता के भजन में महामाया देवी की महिमा का बखान है। 'लोक लावण्य वृत्तांत नामक गद्य कृति में सृष्टि की उत्पत्ति का तत्व विवेचन है।
इन्होंने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परम्परा 'रहस', 'भादो गम्मत एवं रतनपुरिहा भजन' की रचना का उल्लेखनीय कार्य किया है। इनके द्वारा रचित माता सेवा के भजन सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में कुंवार और चैत्र नवरात्र में पूरे छत्तीसगढ़ में गाये जाते हैं। इनके द्वारा रचित 'रहस' रचना पूरे छत्तीसगढ़ में प्रचलित है। इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। 19वीं शताब्दी में रचित छत्तीसगढ़ का इतिहास, जो एकमात्र ग्रंथ है, जिससे हमें छत्तीसगढ़ के इतिहास की क्रमबद्ध जानकारी मिलती है।
इतिहासकार पंडित केदारनाथ ठाकुर- पं. केदारनाथ ठाकुर की उल्लेखनीय कृति 'बस्तर भूषण' उन्हें एक इतिहासकार के रूप में स्थापित करती है, वस्तुतः पहले वे एक साहित्यकार हैं। यह कृति 20वीं सदी में प्रकाशित बस्तर विषयक प्रथम स्रोत है। अब तक बस्तर जिला गजेटियर का प्रकाशन नहीं हुआ है, इस तरह यह तत्कालीन समय में प्रकाशित बस्तर का गजेटियर भी है और इस प्रकार 1908 में प्रकाशित इस कृति को हिन्दी का प्रथम गजेटियर कहा जा सकता है। इनके संबंध में विस्तृत विवरण पुस्तक के 'हिन्दी साहित्य' नामक अध्याय में दिया गया है।
इतिहासकार प्यारेलाल गुप्त- जन्म 17 अगस्त, 1819, रतनपुर में. इनके पूर्वज मूलतः कड़ामानिकपुर (उ.प्र.) के थे। स्व. श्री गुप्त को गवेषणात्मक लेखों के लिये प्रदेश में विशेष स्थान प्राप्त है। बिलासपुर गजेटियर के समकक्ष 'बिलासपुर वैभव इनकी महत्वपूर्ण रचना है। छत्तीसगढ़ दर्शन में इन्होंने समग्र छत्तीसगढ़ का वर्णन किया है। वे साहित्यकार होने के साथ एक इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता भी थे। फ्रांस की राज्य क्रांति', 'ग्रीक का इतिहास' आदि रचनाएं उन्हें एक इतिहासकार के रूप में स्थापित करती हैं। प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता रायबहादुर हीरालाल के अनुरोध पर उन्होंने 'बिलासपुर वैभवः लिखा था। 'श्री विष्णु महायज्ञ स्मारक ग्रंथ में रतनपुर के प्राचीन इतिहास व पुरातत्व का वर्णन है। वे हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान् एवं पुरातत्ववेत्ता पं. लोचन प्रसाद पांडेय के मित्र थे, उनके निधन पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर श्री गुप्त ने ग्रंथ लिखा। इन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकभाषा के गीतों और कविताओं को एक नई दिशा दी। इनकी साहित्यिक कृतियों के संदर्भ में छत्तीसगढी साहित्यकारों के अध्याय में चर्चा की गई है।
डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र- छत्तीसगढ़ के गौरव को समर्पित इतिहासकार डॉ. रमेन्द्र नाथ मिश्र छत्तीसगढ़ के गौरव एवं सम्मान के प्रति सजग दृष्टि रखने वाले ख्यातिनाम विद्वानों में से एक हैं। उनका जन्म 29 जून. 1945 को फुलवारी पारा रतनपुर जिला बिलासपुर में हुआ था। उनके पिता रघुनाथ मिश्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। इन्हें इतिहास में पी.एच.डी. और डी.लिट की उपाधि प्राप्त है। अनेक महाविद्यालयों में कुशल अध्यापन करने के पश्चात् अब वे रविशकर विश्वविद्यालय रायपुर के प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग में विभागाध्यक्ष है। डॉ. मिश्र आरम्भ से ही छत्तीसगढ़ के इतिहास एवं पुरातत्व के लिये समर्पित रहे हैं। लगभग 30 शोधार्थियों को इनके मार्गदर्शन में पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त हो चुकी है। डॉ मिश्र म. प्र. इतिहास परिषद् के अध्यक्ष रह चुके हैं तथा वर्तमान में छत्तीसगढ़ इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अनुसंधान परिषद् के अध्यक्ष हैं। छत्तीसगढ़ के इतिहास से सम्बन्धित अब तक इनके 12 ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं।