रायपुर डायनामाइट कांड
देशमक्ति से ओतप्रोत् युवकों ने राजबंदियों को मुक्त कराने के लिये रायपुर जेल की दीवार को डायनामाइट से उड़ा देने की योजना बनाई थी जो डायनामाइट काड के नाम से जाना जाता है। इस कार्य में बिलखनारायण अग्रवाल, ईश्वरीचरण शुक्ल, नागरदास यावरिया, नारायणदास राठौर एवं जयनारायण पांडेय प्रमुख थे। बिलखनारायणअग्रवाल जबलपुर से रायपुर आये थे एवं उनके पास एक शक्तिशाली डायनामाइट था जिसे श्री अग्रवाल ने जेल की पिछली दीवार पर लगाया और उसमें आग लगा दी। यद्यपि जेल की दीवार को क्षति पहुंची तथापि राजबंदियों को छुड़ाने में कामयाबी हासिल नहीं हो पाई। इससे प्रशासन चौकन्ना हुआ एवं शंका के आधार पर षड्यंत्र में शामिल सभी लोगों को सामूहिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें बिलखनारायण अग्रवाल, नारायण दास राठौर, जयनारायण पांडेय, ईश्वरीचरण शुक्ला, नागरदास बावरिया, नारायण अग्रवाल आदि प्रमुख थे, कितु इन पर आरोप सिद्ध न हो सका। सभी समाचार पत्रों ने इस कार्य को प्रमुखता से प्रकाशित किया। वहां से छूटकर आने पर बाद में 1944 को ईश्वरीचरण शुक्ला एवं नारायणदास राठौर को टेलीफोन के कनेक्शन काटने एवं लेटर बाक्स जलाने के आरोप मे पुन गिरफ्तार किया गया।
बिलासपुर में आंदोलन- बिलासपुर में भी अनेक लोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किये गये। गिरफ्तार होने वाले प्रमुख व्यक्तियो मे छेदीलालसिह, यदुनंदनप्रसाद श्रीवास्तव और श्री चिन्तामणि ओरावाल आदि सम्मिलित थे। 15 अगस्त सन 1942 को श्री कालीचरण की अध्यक्षता में हो रही सभा में एकत्रित भीड़ पर लाठी चालन किया गया। श्री कालीचरण गिरफ्तार कर लिये गये। बिलासपुर जिले में आंदोलन के संचालन हेतु श्री राजकिशोर वर्मा को डिक्टेटर नियुक्त किया गया था। सरकारी अत्याचार से पीडित हो अनेक लोगों ने भूमिगत होकर कार्य करना आरम्भ कर दिया । 2 अक्टूबर के दिन गाधी जयन्ती समारोह मनाने शहर में 144 धारा लागू होने के बावजूद युवकों ने एक जुलूस निकाला. पर सरकार ने सभी को गिरफ्तार कर लिया। राजनीतिक कैदियों को जेलों में कठोर यातनाएं दी गयीं। युवकों द्वारा प्रतिदिन जुलूस निकाला जाता और झंडा चढ़ाया जाता था। इस प्रकार सभाए और गिरफ्तारी रोज की घटनाएं थीं। गांव-गांव तक यह आदोलन फैल गया था और हिसक घटनायें होती जा रही थीं।
दुर्ग में आंदोलन आगजनी- दुर्ग जिले की जनता करो या मरो' के नारे के साथ उद्वेलित हो चुकी थी। युवकों द्वारा लेटर बाक्स फेंक दिये गये और टेलीफोन के तार काट दिये गये। श्री रघुनन्दन सिंगरौल क्रातिकारी कार्यों से प्रभावित थे और वे भी कोई असाधारण कार्य करना चाहते थे। अपने साथियों से मिलकर दुर्ग जिला कचहरी में उन्होने 28 अगस्त की रात को पहरेदारों को चकमा देकर कचहरी के एक भाग में आग लगा दी। सदेह के आरोप में पुलिस ने श्री सिगरौल को पकड़ लिया। वास्तविक अपराधी को जानने के लिये उन्हें घोर यातनाएं दी गयी, पर उन्होंने कुछ भी नहीं बताया। पुनः 5 सितबर, 1942 को उन्होंने अपने घर के पास स्थित नगरपालिका भवन मे अपने मित्र जसवतसिह ठाकुर के सहयोग से आग लगा दी। दफ्तर पूरी तरह से जल गया। इस कार्य के लिये सिंगरौल को दोषी बनाते हुये उन्हें फिर से पकड़ लिया गया। उन्हें जूतों और डंडों से बुरी तरह से पीटा गया. पर उन्होंने कुछ भी बताने से इकार कर दिया। अपराधी की जानकारी देने के लिये सरकार की ओर से 10.000 रुपए का पुरस्कार पोषित किया गया। श्री सिंगरौल पर पुलिस का सदेह बढ़ गया, उन्हें प्रतिदिन आतकित किया जाने लगा। 12 सितंबर की रात्रि उन्हें सभी प्रकार की यातनाएं दी गयीं। अपना विरोध प्रकट करते हुये उन्होंने दिल्ली से आये पुलिस अधिकारी श्री नरेन्द्र सिन्हा पर आक्रमण कर दिया। श्री सिन्हा बेहोश हो गये। सिंगरौल पर बेतों और लातों की झडी लग गयी। वे रायपुर जेल भेज दिये गये। लगातार मार के कारण उनका शरीर अस्वस्थ हो गया। कुछ समय उपरांत आंदोलन का दौर मन्द पड़ गया। बाद में 1946 में उन्हें पं. शुक्ल द्वारा रिहा कर दिया गया।
गांधीजी द्वारा आरंभ अहिंसात्मक आदोलन नेतृत्व के अभाव में हिंसात्मक हो गया। संपूर्ण देश में हिंसा तोड़-फोड की घटनाएं हुई। धीरे-धीरे आदोलन धीमा पड़ा एवं मई 1944 में गांधी जी की रिहाई के साथ शांत हो गया। 1945 में वायसराय लॉर्ड वेवेल ने सभी राजबदियो की मुक्ति के आदेश दे दिये। इस समय तक द्वितीय विश्व युद्ध भी समाप्त हो चुका था। अतः आंदोलन शांत हो गया, किंतु अंग्रेजों के भारत छोड देने की माग बनी रही। इस बीच इग्लैंड में एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी सत्ता में आई। इस सरकार ने केन्द्रीय एवं प्रांतीय सभाओं का निर्वाचन दिसंबर 1945-46 में 1935 के अधिनियम के आधार पर दूसरी बार करवाया।
नये चुनाव- 1936 के बाद 1945-46 को पुनः प्रांतों में आम चुनाव हुए। इस नये चुनाव में कांग्रेस को न केवल सामान्य सीटों में अपितु कुछ आरक्षित (विशेष वर्गों हेतु) सीटों पर भी विजय प्राप्त हुई। मध्यप्रात विधान मंडल में कांग्रेस को 112 में 84 सीटें प्राप्त हुई। 27 अप्रैल, 1946 को पं. रविशंकर शुक्ल ने दूसरी बार मध्यप्रांत एवं बरार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और यहां गवर्नर के शासन का अंत हो गया। श्री घनश्याम सिंह गुप्त प्रांत विधान सभा अध्यक्ष चुने गये | श्री द्वारका प्रसाद मिश्र गृहमंत्री बने, अन्य मंत्रियों में डी.के. मेहता, एस.व्ही. गोखले. आर.के. पाटिल. पी.के. देशमुख, डॉ. डब्ल्यू. एस. वारलिंगे और डॉ. एस. हसन थे। इस सरकार ने तत्काल राजनैतिक कैदियों की मुक्ति. राजनैतिक मामलों में जारी समस्त वारंटों का निरस्तीकरण, पूर्व शासन द्वारा वसूल किये गये जुर्माने की वापसी आदि कार्य किये।
उधर केबिनेट मिशन' योजनान्तर्गत जुलाई, 1946 में हुए संविधान सभा के चुनाव (अप्रत्यक्ष) पश्चात् इस सभा को अंतरिम संसद मानकर केन्द्र में सरकार का गठन किया गया। भारत संघ के प्रथम प्रधानमत्री के रूप में पं. नेहरू 3 सितंबर को अंतरिम सरकार का गठन कर देश के प्रथम प्रधानमत्री बने। मुस्लिम लीग के पाकिस्तान की मांग पर अड़े रहने और साप्रदायिक हिसा भडकाने के कारण अंततः अंग्रेजों ने लॉर्ड माउंटबेटन को मार्च 1947 में वायसराय बना कर भेजा, जिन्हें विषम परिस्थितियो में कार्य करने एवं भारत की स्वतंत्रता हेतु योजना निर्मित कर प्रधानमंत्री एटली की घोषणा (20 फरवरी, 1947) के अनुसार सत्ता भारतीयो को सौंपनी थी।
स्वतंत्रता की प्राप्ति- लॉर्ड माउंटबेटन ने जो योजना प्रस्तुत की (तीन जून योजना अथवा माउंटबेटन योजना) उसमें भारत के विभाजन का प्रस्ताव था। काग्रेस ने उसे 15 जुलाई, 1947 को स्वीकार कर लिया, लीग तो पहले ही विभाजन चाहती थी। तदनुसार भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 निर्मित हो ब्रिटिश संसद एवं राजा द्वारा (क्रमश
15 एवं 18 जुलाई, 1947 को) स्वीकृत हुआ और भारत व पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र निर्मित हुए। 14 अगस्त की मध्यरात्रि लोगों को विभाजन की पीड़ा तो थी, किंतु स्वतंत्रता के अरुणोदय का हर्ष भी था।