कंडेल सत्याग्रह
1920 ई. के दूसरे छमाही में कण्डेल ग्राम के सत्याग्रह ने संपूर्ण देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। कण्डेल धमतरी तहसील में एक ग्राम है। महानदी के तट पर रूद्री और माडमसिल्ली नामक दो स्थान हैं. जहां ब्रिटिश सरकार द्वारा नहर का निर्माण करवाया गया। आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई के लिए यहां से नहर निकाली गयी। कण्डेल इसी नहर क्षेत्र में आता है। पानी देने पर सरकार किसानों से नहर-कर वसूली करता था। पानी की सुविधा के लिए सम्बन्धित ग्रामवासियों को 10 वर्षों का अनुबन्ध करना जरूरी होता था। अनुबन्ध की राशि बहुत बड़ी होती थी। अतः उसके भार को वहन करना ग्रामवासियों के लिए कठिन था। यही कारण था कि नहर विभाग अपनी योजनानुसार अधिक गांवों को अनुबन्ध के अन्तर्गत नहीं ला पा रहा था। कंडेल ग्राम को अनुबन्ध के अंतर्गत लाने की दृष्टि से षड्यंत्र के तहत अगस्त 1920 में बिना माग के जल प्रवाहित कर दिया गया, पर गांववालों ने अनुबन्ध करने से इनकार कर दिया। इस पर सरकार ने ग्रामवासियों पर पानी चोरी का आरोप लगा दिया और 4033 रुपये का सामूहिक जुर्माना कर उसकी वसूली हेतु वारंट जारी कर दिया। इसका विरोध ग्रामवासियों ने किया। इस प्रकार सरकार द्वारा ग्रामवासियों पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर बलपूर्वक जुर्माने की राशि वसूलने की कार्यवाही आरंभ कर दी गई। सरकार की इन गलत नीतियों के विरोध में गांव की जनता ने विद्रोह कर दिया। तहसील के प्रमुख नेताओं की एक सभा आयोजित हुई, जिसमें पं. सुन्दरलाल शर्मा, नारायण राव मेघावाले और छोटेलाल श्रीवास्तव ने भाग लिया। सभा में यह निर्णय लिया गया कि सरकारी अत्याचार के विरोध में सत्याग्रह किया जाये और जुर्माने की राशि का भुगतान न किया जाये। अत. सरकार द्वारा इस राशि की वसूली हेतु गांव वालों के मवेशियों को कुर्क कर लिया गया और उन्हें नीलामी हेतु पहले धमतरी और फिर विभिन्न रथानों पर ले जाया गया, पर कहीं पर भी जानवरों को खरीदने वाला नहीं मिला। शासन के विरोध के कारण अनेक लोग गिरफ्तार कर लिये गये। कडेल ग्राम का यह आंदोलन अनेक माहों तक चलता रहा। सरकारी अत्याचार दिनों दिन बढते गये. ऐसी स्थिति में आदोलन का नेतृत्व गांधीजी को ही सौंपने का विचार किया गया। इस हेतु प. सुन्दरलाल शर्मा गांधीजी से भेट करने कलकत्ता गये। इसकी सूचना पाकर सरकार की सक्रियता में वृद्धि हुई, क्योकि शासन को गाधीजी के द्वारा आंदोलन का नेतृत्व ग्रहण कर लिये जाने पर इसके देशव्यापी हो जाने का भय था, अतः आदोलन स्थल पर जाकर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर वस्तुस्थिति से अवगत हुए। उन्होने यह सुझाव दिया कि ग्रामवासियों पर लगाया गया आरोप निराधार है। ऐसी स्थिति में उन्होंने पहले जुर्माना की आधी, फिर तीन चौथाई और जनता के न मानने पर अंततः विवशता में जुर्माने की पूर्ण राशि को माफ करने की घोषणा की और ग्रामीणों के जानवर वापस कर दिये गये । इस प्रकार गाँधीजी के यहा आने से पूर्व यह सत्याग्रह आन्दोलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया, जो संपूर्ण क्षेत्र के लिए गौरव की बात थी। गाँधीजी ने धमतरी आकर आंदोलन को क्रियान्वित करने और सफलता प्राप्त करने पर कडेल व तहसील के सभी लोगों को बधाई दी और भविष्य में भी इसी तरह स्वाधीनता के लिये लड़ने हेतु अपना मार्गदर्शन दिया।
गांधीजी की प्रथम छत्तीसगढ़ यात्रा (20-21 दिसंबर, 1920 ई.)
कडेल ग्राम में नहर कर का विरोध कर रहे सत्याग्रहियों ने गांधीजी को आदोलन की बागडोर सौंपने हेतु आमंत्रित करने का निर्णय लिया। इस समय गांधीजी बंगाल के दौरे पर थे। पडित सुन्दरताल शर्मा उन्हें आमंत्रित करने कलकत्ता गये। गांधीजी को सत्याग्रह और वस्तु स्थिति की पूर्ण जानकारी दी। गांधीजी ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया।
रायपुर आगमन- गांधी जी पं. शर्मा के साथ 20 दिसंबर को रायपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे। उनके साथ राष्ट्रीय नेता व खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मौलाना शौकत अली भी रायपुर आये थे। रायपुर पहुंचते ही इन तीनो को उत्साहित जनता ने कंडेल सत्याग्रह की सफलता का शुभ समाचार दिया। संपूर्ण रायपुर जिला उस समय पूर्ण उत्साह पर था। गांधीजी ने उत्साही जनता को गांधी चौक में संबोधित किया, असहयोग आदोलन के कार्यक्रम और महत्व पर प्रकाश डाला।
धमतरी प्रवास-(21 दिसंबर, 1920) दूसरे दिन दिसम्बर को कार से प्रातः 11 बजे गांधीजी मौलाना शौकत अली के साथ धमतरी पहुंचे। नगर के मकई बंध चौक में गाधीजी का स्वागत उत्साही जनता ने किया। सभा हेतु स्थल जानी हुसैन का बाड़ा तय किया गया था। वहां पहुंच कर खुली कार से उतरने पर उनको समीप से देखने व मिलने जनता की भीड़ उमड़ पड़ी। ऐसी स्थिति में गुरूर के एक कच्छी व्यापारी उमर सेठ ने गांधीजी को अपने कंधों पर बिठाया और उन्हें मंच तक पहुंचाया। यहा गाधीजी ने जनता को लगभग एक घंटे तक संबोधित किया। क्षेत्र के प्रथम एवं सफल सत्याग्रह के संचालन हेतु यहां की जनता को बधाई दी। दोपहर का भोजन गाधीजी नगर के नथ्थूजी जगताप के यहां कर दो बजे वापस रायपुर हेतु रवाना हुए। धमतरी के जमीदार बाजीराव कृदत्त ने तिलक स्वराज फंड हेतु 501 रुपये भेंट किया।
कुरूद में संबोधन- धमतरी से रायपुर की वापसी यात्रा के मध्य कुरूद ग्राम में गांधी जी ने यहा की जनता से भेंटकर उन्हें संबोधित किया।
रायपुर में महिलाओं को संबोधन-रायपुर वापस पहुंच कर गांधीजी ने यहां ब्राह्मण पारा में आनंद समाज वाचनालय के समीप महिलाओं की सभा को संबोधित किया और स्वाधीनता आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए उनका आह्वान किया। महिलाओं ने प्रत्युत्तर में तुरंत तिलक स्वराज फंड के लिये लगभग दो हजार रुपये कीमत के गहने गाधीजी को भेंट किया। इस प्रकार गांधीजी ने यहां की महिलाओं को भी आंदोलित कर दिया, जिन्होने आगे चलकर यथासभव आंदोलन में भागीदारी की।
वापसी- गांधीजी रात्रि रायपुर से नागपुर हेतु रेल के तृतीय श्रेणी के डिब्बे में बैठकर रवाना हुए जहां 16 दिसंबर को कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होना था।
असहयोग आंदोलन और छत्तीसगढ़ में उसका प्रभाव
रौलेट एक्ट, जलियावाला बाग हत्याकांड और खिलाफत के संबंध में अंग्रेजों के व्यवहार से गांधी जी ने ब्रिटिश शासन का विरोध करने का निर्णय किया। दक्षिण अफ्रीका में गाधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन का सफलतापूर्वक संचालन किया था। 1915 में वे अफ्रीका से भारत आए थे तथा अपने साथ एक विशिष्ट दर्शन एवं राजनीतिक तकनीक लाए थे जिसकी उपयोगिता वहां सिद्ध हो चुकी थी। अतः गाधीजी ने असहयोग आदोलन का प्रस्ताव रखा। सितंबर 1920 में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन इस प्रश्न पर विचार करने हेतु लाला लाजपतराय के सभापतित्व में कलकत्ता में आयोजित किया गया। इसमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम का विरोध लाजपतराय एवं चितरंजन दास, विपिनचन्द्र पाल, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि नेताओ ने किया कितु मोतीलाल नेहरू एवं अली बधुओं के समर्थन से यह प्रस्ताव काग्रेस ने स्वीकार कर लिया। यही वह क्षण था जहां से गांधी युग की शुरूआत होती है। गांधी के कलकत्ता प्रस्ताव पर आपत्ति कर रहे नेताओं ने नागपुर के नियमित अधिवेशन में अपना विरोध वापस ले लिया।
असहयोग आंदोलन और छत्तीसगढ़
काग्रेस का नियमित अधिवेशन 26 दिसंबर, 1920 को नागपुर में हुआ। इसमें गांधी जी के असहयोग प्रस्ताव पर पुनर्विचार हुआ। अध्यक्षता विजयराघवाचार्य ने की। यहां लाला लाजपतराय और चितरंजनदास ने अपना विरोध वापस ले लिया और अंततः गांधी जी के प्रस्ताव को कांग्रेस ने स्वीकृति प्रदान कर दी। आंदोलन की रूप रेखा गांधी जी द्वारा कलकत्ता के सितंबर के विशेष अधिवेशन में प्रस्तुत प्रस्ताव के सदृश थी। प्रस्ताव में निहित कार्यक्रम थे सरकारी उपाधियों का त्याग, सरकार को कर नहीं देना, अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार, मद्य निषेध, कौंसिल का बहिष्कार, पंचायती अदालतों का गठन, राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना आदि प्रमुख थे। छत्तीसगढ़ से इस अधिवेशन में भाग लेने वालों में पं. सुन्दरलाल शर्मा, पं. रविशंकर शुक्ल, वामनराव लाखे. बैरिस्टर सी.एम. ठक्कर, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, धमतरी से नारायणराव मेघावाले, नथ्थूजी जगताप, घाबू छोटेलाल, नारायण राव दीक्षित, बिलासपुर से ई. राघेन्द्रराव, ठाकुर छेदीलाल आदि प्रमुख थे। ये सभी नेता जब अधिवेशन से वापस क्षेत्र में आये तो उन्होने असहयोग हेतु तय कार्यक्रमों का बड़ी तीव्रता से प्रचार आरम कर दिया। विभिन्न कार्यक्रमो के अतर्गत यहां के नेताओं ने निम्नानुसार कार्य किये -
न्यायालयों का बहिष्कार- वकालत का त्याग-न्यायालयों के बहिष्कार हेतु रायपुर से ठाकुर प्यारेलाल सिंह (राजनांदगांव से निर्वासित होकर रायपुर में बसे) एवं पं. रामनारायण तिवारी बिलासपुर से ई. राघवेन्द्र राव, एन.आर. खानखोज, ठाकुर छेदीलाल एवं डी.के. मेहता आदि ने वकालत छोड दी इनका अनुसरण अंचल के अन्य वकालत पेशा लोगों ने किया।
पदवियों का त्याग- रायपुर के वामनराव लाखे ने राय साहब' की उपाधि छोड़ दी। इनके इस कार्य के लिये जनता ने सार्वजनिक सभा आयोजित कर इन्हें लोकप्रिय' की उपाधि से सम्मानित किया। अन्य लोगों ने भी अंग्रेजों द्वारा दी गई उपाधियों का त्याग कर दिया जिनमें प्रमुख थे-वैरिस्टर कल्याणजी, मोरारजी थेकर तथा सेठ गोपीकिशन ने अपनी राय साहब' वाली उपाधि त्याग दी, काजी शेर खाँ ने अपनी ‘खान साहब' वाली उपाधि त्याग दी।
कौंसिल एवं चुनाव का बहिष्कार- कौसिलों के बहिष्कार के अंतर्गत विधान परिषद एवं जिला परिषदों के साथ असहयोग किया गया। रायपुर जिला परिषद के सदस्य यादवराव देशमुख ने परिषद का बहिष्कार किया। इसी समय अंग्रेजी शासन ने पूरे देश में धारा (प्रांतीय विधान सभा) सभाओं के गठन की प्रक्रिया 1921 में आरंभ की। इस सभा हेतु रायपुर जिले में दो प्रतिनिधि चुनकर भेजे जाने थे। उत्तर रायपुर (रायपुर और बलौदा बाजार तहसील), दक्षिण रायपुर (धमतरी और महासमुंद तहसील) क्षेत्रों से एक-एक प्रतिनिधि। असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम के अंतर्गत इस चुनाव का बहिष्कार किया गया। पूर्व में धारा सभा हेतु निर्वाचित बाजीराव कृदत्त ने भी त्यागपत्र दे दिया। इस पर शासन ने दिसंबर 1921 में पुनः चुनाव कराये, इस बार रायपुर जिले से दो प्रतिनिधि-फगुआ रोहिदास (रायपुर-बलौदा जाबार क्षेत्र से) तथा बाजीराव कृदत (धमतरी-महासमुद क्षेत्र से) सदस्य बन गये। इस प्रकार शासन को सफलता मिली. पर यह अल्पकालीन थी। होली के अवसर पर शासन ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में बाजीरव कृदत ने अपना इस्तीफा दे दिया। इस कृत्य पर धमतरी की जनता ने एक सार्वजनिक सभा में बाजीराव कृदत को लोकप्रिय' की उपाधि से विभूषित किया। शासन ने पुनः तीसरी बार चुनाव की तारीख घोषित की, पर इस बार कोई उम्मीद्वार खडा नहीं हुआ। शासन प्रतिनिधि के चयन में पूर्णतः असफल रही।विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी का प्रचार- इस कार्य हेतु 1 अगस्त, 1921 को रायपुर में एक विशाल जुलूस निकाला गया। विदेशी वस्तुओं में आम जरूरत के केवल विदेशी वस्त्र ही थे. अतः विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। नगर के प्रभूलाल काबरा और रत्नाकर झा ने अपनी पत्नियों की समस्त विदेशी साडियां होली में भेट कर दी।इसी तरह बिलासपुर. दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी आदि में भी विदेशी वस्तुओं का व्यापक विरोध किया गया, साथ ही स्वदेशी के प्रचार हेतु खादी बनाने को प्रोत्साहित किया गया। नीचे रचनात्मक कार्यक्रम के अंतर्गत इस विषय पर चर्चा की जा रही है।
रचनात्मक कार्यक्रम- असहयोग के दौरान अंग्रेजी स्कूलों का एवं अंग्रेजी शिक्षा का त्याग करने से विद्यार्थियों की शिक्षा पर असर पड़ने लगा। इसी प्रकार सरकारी न्यायालयों के बहिष्कार से न्याय संबंधी कार्य प्रभावित होने लगे। इसके विकल्प के रूप में असहयोग कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार करने हेतु राष्ट्रीय विद्यालय एवं अदालती कार्यों के निपटारे हेतु पंचायती अदालतों का गठन किया गया। इसी प्रकार व्यापक रूप से मद्य निषेध कार्यक्रम चलाया गया। ऐसे समय में हिन्दू-मुस्लिम एकता एव अहिंसा पर बल दिया गया।
खादी का प्रचार-खादी आश्रम- स्वराज एवं खादी इस आदोलन का मुख्य उद्देश्य बन गया था। अनेक स्थानों पर खादी आश्रमों की स्थापना की गई। लोगों ने अपने घरों में चरखे चलाकर खादी बनाना आरंभ कर दिया। 1921 में रायपुर कांग्रेस कमेटी ने नगर में गरीबों को चार सौ साठ चरखे निःशुल्क वितरित किये। नगर के व्यापारियों ने विदेशी कपड़ों का व्यापार बंद कर दिया। कुछ व्यापारी जो विदेशी कपड़ों का व्यापार जारी रखे हुए थे उनकी दुकानों पर लोगों ने खरीददारी बंद कर दी। 11 अक्टूबर 1921 को रावण माठा मैदान में खादी की तीन दिन की प्रदर्शनी आरंभ की गई तथा दूसरे दिन इसे केवल महिलाओं के लिये खोला गया और इसका संचालन अंजुमन बेगम ने किया।
धमतरी में खादी प्रचार का कार्य कंडेल के मालगुजार बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के द्वारा अपने निवास पर स्वयं के व्यय पर खादी उत्पादन केंद्र अगस्त 1921 में प्रारंभ कर किया गया। उन्हें इस कार्य में दाऊ डोमर सिह और यहां की महिलाओं ने भरपूर सहयोग दिया था।
बिलासपुर नगर एवं ग्रामों में भी चरखे बांटे गये ताकि विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार हो एव खादी का प्रचार हो। बिलासपुर में देवतादीन तिवारी ने स्वयं की खादी वस्त्रों की दुकान खोली तथा कैलाश सक्सेना ने नार्मल स्कूल (वर्तमान छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट) के समीप स्वदेशी स्टोर्स खोला था। खादी वस्त्र धारण करना राजद्रोह माना जाता था, पर इसके उपयोग में निरतर वृद्धि होती रही।
माखन लाल चतुर्वेदी बिलासपुर जेल में- बिलासपुर में प्रातीय राजनैतिक सम्मेलन (मध्यप्रांत) के दौरान 12 मार्च, 1921 को शनिचरी पडाव में 'कर्मवीर के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी का ओजस्वी भाषण हुआ, जिसके लिये उन्हें 12 मई, 1921 को राजद्रोह के आरोप में जबलपुर में गिरफ्तार कर बिलासपुर जेल लाया गया। यहां दो महीने के मुकदमे के पश्चात् उन्हें आठ माहो के अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा हुई। उनसे साधारण कैदी की तरह व्यवहार किया जाता था, किंतु ऐसे कठिन समय में भी उन्होने अपने कवित्व को जिदा रखा और इस दौरान बिलासपुर जेल में ही "पूरी नहीं सुनोगे तान", "पुष्प की अभिलाषा', "पर्वत की अभिलाषा' आदि राष्ट्र प्रेम से पूर्ण काव्य का सृजन किया। यहां से वे बिलासपुर की जनता को असहयोग हेतु अभिप्रेरित करते रहे। 1 मार्च, 1922 को उन्हें केन्द्रीय जेल जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया, जहां 4 मार्च, 1922 को वे रिहा हुए।
मद्य निषेध- यह असहयोग का महत्वपूर्ण सोपान था। मद्य निषेध हेतु हर तबके ने सक्रियता दिखाई। इस कार्यक्रम के अंतर्गत मादक पदार्थों की बिक्री का विरोध, शराब भट्टियों पर धरना आदि किया गया। यह विरोघ इतना प्रभावशाली था कि आबकारी विभाग का व्यवसाय चौपट हो गया था, क्योंकि शराब की नीलामी/बिक्री के विरोध के कारण क्षेत्र में इसकी खपत अचानक कम हो गई थी।
आबकारी नीलामी का बहिष्कार- रायपुर में आबकारी विभाग ने जब शराब, अफीम, गांजा के ठेके की नीलामी की तो किसी भी ठेकेदार ने नीलामी में हिस्सा नहीं लिया। स्थिति से निपटने हेतु शासन ने इन सभी ठेकों को तहसील स्तर पर देने का निर्णय किया और सर्वप्रथम धमतरी तहसील में यह कार्य आरंभ किया गया, चूकि धमतरी एक जागरूक व राष्ट्रीय आदोलन में सक्रिय क्षेत्र था. अत. फरवरी 1921 में शासन ने तहसील के गांव गट्टासिल्ली में गोपनीय लप से केवल उन लोगों को सूचना देकर बुलवाया जो पहले आबकारी विभाग मे ठेके का कार्य कर चुके थे। पर धमतरी के जागरूक लोगो को इसकी भनक लग गई। इस पर नारायण मेघावाले अपने तीन साथियों के साथ नीलामी की पूर्व रात्रि मे बैलगाडी से भीषण जंगली क्षेत्र से यात्रा कर प्रातः नौ बजे नीलामी स्थल पर पहुंचे और उन्होंने आंदोलन की सफलता हेतु विनय कर सभी आमत्रित ठेकेदारो को नीलामी में भाग न लेने हेतु तैयार कर लिया। शराब ठेका किसी ने नही लिया और शासन की यह योजना भी असफल हो गई। अब आबकारी विभाग ने धमतरी कचहरी के सामने स्वयं शराब विक्रय आरंभ कर दिया, इस पर धमतरी तहसील कांग्रेस कमेटी के लोगों ने शराब की दुकान के समक्ष धरना देना आरंभ कर दिया और ऐसी स्थिति में कोई भी यहां शराब क्रय करने का नैतिक साहस न जुटा पाया और अततः शासन को यह दुकान भी बंद करनी पड़ी।
सत्याग्रह आश्रम- 1921 में आंदोलन को जीवंत बनाने और तीव्र करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय युवकों को प्रशिक्षण देने हेतु पं. सुदरलाल शर्मा की देख-रेख में सत्याग्रह आश्रम स्थापित किये गये। यहां युवकों के लिये निःशुल्क आवास और भोजन की सुविधा होती थी तथा युवको को प्रशिक्षित कर उनको कर्तव्यनिष्ठ बनाया जाता था। इस प्रकार के आश्रम नागपुर मे महात्मा भगवानदीन एवं रायपुर में पं. सुंदरलाल शर्मा के द्वारा स्थापित किये गये। रायपुर मे यह आश्रम 7 फरवरी, 1921 को खोला गया। इस अवसर पर शर्मा के ओजस्वी भाषण से प्रभावित व प्रेरित होकर नार्मल स्कूल रायपुर के 53 छात्रों ने अंग्रेजी शिक्षा त्याग कर सत्याग्रह आश्रम में प्रवेश किया तथा यहां एक माह का प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। यहां ये युवक असहयोग के तौर-तरीके सीखकर जन-जन में इसे प्रसारित करने लगे।
धमतरी तहसील से भी लगभग 30 युवक रायपुर के सत्याग्रह आश्रम में आये। इनमें धमतरी के डॉ. शोभाराम देवागन, विशंभर पटेल, हरखराम, परदेशीराम एवं रामदुलारे तथा नगर से श्यामलाल सोमर्थ आदि प्रमुख थे।
प्रचार केन्द्रों की स्थापना- असहयोग के प्रचार हेतु कांग्रेस कमेटी द्वारा जिले में अनेक प्रचार केन्द्रों की स्थापना की गई। इन केन्द्रों द्वारा आंदोलन हेतु संगठन की सदस्य संख्या में वृद्धि करना और लोगों में प्रचार हेतु साहित्य का वितरण करने का कार्य बड़ी मात्रा में किया गया। केवल दो माहों में ही 65,450 पर्चे बांटे गये और केवल रायपुर शहर में ही लगभग 360 सदस्य 1920 में ही बनाये गये। कांग्रेस की शाखाएं ग्रामीण अचलों में स्थापित की गईं। 1919 के अत तक रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी में केवल 26 सदस्य थे. 1921 के अप्रैल में यह संख्या 15,141 हो गई। बिलासपुर में भी इसी तरह के प्रचार केन्द्रों की स्थापना की गई। इस समय तक बिलासपुर जिले में कांग्रेस के 14,338 सदस्य बन चुके थे।
राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना- अंग्रेजी शालाओं का बहिष्कार करने वाले छात्रों की शिक्षा के लिये समूचे देश में राष्ट्रीय विद्यालय खोले गये। रायपुर में 5 फरवरी, 1921 को माधवराव सप्रे के संचालन में एक जनसभा हुई जिसमें राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना हेतु दस हजार की राशि एकत्र की गई। विद्यालय हेतु सेठ गोपीकिशन ने भवन की व्यवस्था की। इसके संचालन का कार्य श्री वामनराव लाखे ने किया और बड़ी संख्या में लोग निःशुल्क अध्यापन हेतु आगे आये। प्रधान अध्यापक की जिम्मेदारी धमतरी के पं. रामनारायण तिवारी ने ग्रहण की जो पूर्व में ही वकालत का त्याग कर चुके थे। नगर के लगभग 240 छात्रों ने अंग्रेजी विद्यालयों का बहिष्कार कर इसमें प्रवेश लिया।
धमतरी में मात्र एक शिक्षण संस्थान था जो मेनोनाईट मिशन द्वारा संचालित किया जाता था। यहां के छात्र भी अंग्रेजी शिक्षा का बहिष्कार करने हेतु उत्सुक थे. किंतु विकल्प न होने के कारण वे इसे छोड़ नहीं सकते थे अतः बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव द्वारा जुलाई 1921 में अपने स्वयं के मकान में स्वयं के व्यय पर राष्ट्रीय विद्यालय खोल दिया। यहां पाचवीं से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा की व्यवस्था की गई। इस विद्यालय में बाबू साहब स्वयं अन्य नौ शिक्षकों के साथ अध्यापन का कार्य करते थे। प्रधान अध्यापक थे-अजीजुर्रहमान। आगे चलकर यहां से उत्तीर्ण हुये छात्रों ने इस विद्यालय मे पढाना आरंभ किया। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने 1924 में 6 माह तक इस विद्यालय में प्रधान अध्यापक के रूप में अपनी सेवायें दीं। इस विद्यालय के छात्रों ने असहयोग के प्रत्येक कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, किंतु वित्तीय कठिनाइयों के कारण चार वर्ष से अधिक समय की महत्वपूर्ण सेवा के पश्चात् यह बंद कर दिया गया।
बिलासपुर में बड़ी संख्या में छात्रों ने अंग्रेजी स्कूलों का त्याग कर दिया। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर के माध्यम से बिलासपुर के विद्यार्थियों को अंग्रेजी शिक्षा के त्याग की प्रेरणा दी। उनकी शिक्षा हेतु बद्रीनाथ साव के मकान में राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया। पं. शिवदुलारे मिश्र यहां के प्रधान अध्यापक नियुक्त किये गये तथा बाबू यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव यहां अध्यापन करने लगे। इसी तरह दुर्ग और राजनांदगांव में भी राष्ट्रीय विद्यालय खोले गये । राजनांदगांव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुये यहां कुछ समय तक प्रधान पाठक का भी कार्य किया।
विद्यालयों में पाठ्यक्रम- राष्ट्रीय विद्यालयों में हिन्दी माध्यम में अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य होता था। यहां विभिन्न विषयों की शिक्षा के साथ आत्मनिर्भरता हेतु सूत कातना, कपड़ा बुनना, बढई एवं लोहार के कार्य आदि भी सिखाये जाते थे। इन सबके अलावा यहां के छात्र आंदोलन के कार्यक्रमों का जनता में प्रचार भी करते थे। कांग्रेस के सदस्य बनाना, तिलक स्वराज कोष हेतु धन एकत्रित करना एवं लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार आदि का कार्य भी ये छात्र करते थे।
राष्ट्रीय पंचायत- सरकारी अदालतों के बहिष्कार के साथ न्याय सुलभ कराने हेतु पंचायती न्यायालयों का गठन किया गया। रायपुर में 4 मार्च, 1921 को गठित पंचायत के मंत्री सेठ जसकरण डागा मंत्री बनाये गये। यह पंचायत 15 अक्टूबर, 1931 तक कार्य करती रही। इस मध्य इसके द्वारा 85 मामलों का निपटारा किया गया । धमतरी में 1921 के फरवरी माह में बाजीराव कृदत्त के मकान में पंचायती अदालत आरंभ किया गया जिसे कृदत्त के द्वारा निःशुल्क दिया गया था।
राष्ट्रीय नेताओं का आगमन- असहयोग आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में देश के प्रथम श्रेणी के नेताओं ने भी रायपुर अंचल की जागरूक राष्ट्र चेतना को देखते हुये यहां के दौरे किये। 1921 में ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राज गोपालाचार्य, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि नेताओं ने यहां की यात्रा की, साथ ही साथ इन नेताओं ने 'कडेल सत्याग्रह के कारण अमिट देशभक्ति की छाप छोड़ने वाली तहसील धमतरी की भी यात्राएं कीं। वहां दाऊ डोमार सिंह नंदवंशी, जो मालगुजार थे, के निवास पर इन नेताओं ने राष्ट्र की तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश डालते हुये अपने विचार व्यक्त किये। इन नेताओं ने यहां आदोलन की तीव्रता एवं लोगों के उत्साह की सराहना की। इसी प्रकार सेठ गोविद दास, मौलाना कुतुबुद्दीन, सेठ जमुनालाल बजाज आदि नेता रायपुर आकर गांधी चौक में जनता को संबोधित किया और जनता का उत्साह वर्धन किया।